Book Title: Jinabhashita 2005 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 15
________________ आयुर्वेद शास्त्र के आलोक में : रात्रिभोजन निषेध | ग्रहण कर लेता है। इसका भी वैज्ञानिक कारण है- प्रकाश की संपूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना (Total internal अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कहावत है- Deads of Dark reflection of light) के कारण सूर्य अपने वास्तविक ness are commited in the dark.अर्थात् काले, अन्याय और अत्याचार के कार्य अंधकार में ही किए जाते हैं। उदयकाल से दो घड़ी अर्थात् 48 मिनट पूर्व ही पूर्व दिशा में दिखने लगता है। वह वास्तविक सूर्य नहीं होता है हमारी आत्मा और शरीर दोनों का संबंध भोजन से है। बल्कि संपूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना के कारण उसका शुद्ध और सात्विक भोजन शुद्ध विचार उत्पन्न करता है आभासी प्रतिबिंब दिखाई देता है। इसी प्रकार वास्तविक और शरीर को निरोग रखता है। भोजन के लिए चार प्रकार सूर्य डूब जाने के बाद भी दो घड़ी या 48 मिनट तक की शुद्धि कही गयी है- द्रव्य शुद्धि, क्षेत्र शुद्धि, काल उसका आभासी प्रतिबिंब आकाश में दिखाई देता रहता शुद्धि और भाव शुद्धि। है। सूर्य के इस आभासी प्रतिबिंब में दृश्य किरणों के साथ जो भी खाया जाए या पिया जाए वह शुद्ध होना अवरक्त लाल किरणे एवं अल्ट्रा वायलेट किरणें नहीं चाहिए। द्रव्य शुद्धि अहिंसा भाव से आती है। जो भोजन होती हैं। वे केवल सूर्योदय के 48 मिनट बाद आती हैं हिंसा कारणों से या हिंसा कार्य से उद्भूत होता होगा वह और सूर्यास्त के 48 मिनट पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं। कभी भी शुद्ध नहीं हो सकता है। हिंसक साधनों जैसे उक्त कारण से दो घड़ी सूर्योदय के पश्चात भोजन करने चोरी आदि से कमाया गया धन और उससे बना भोजन का विधान सुनिश्चित किया गया है। कैसे शुद्ध होगा। उसी प्रकार अकाल या रात्रि में किया इसी प्रकार वैष्णव धर्म में सूर्य ग्रहण के काल में गया भोजन शुद्ध नहीं होता है। प्रकाश में किया शुद्ध भोजन करने का निषेध किया गया है। इसका भी वैज्ञानिक भोजन सात्विक भावों का जनक होता है। पहलू है। सूर्यग्रहण के समय में उक्त दोनों प्रकार की स्वामी शिवानंद जी एक परोपकारी संत हुए है जिन्होंने अदृश्य किरणों की अनुपस्थिति दृश्य प्रकाश में रहती है। हेल्थ एंड डाइट पुस्तक में लिखा है "The evening इन दोनों प्रकार की किरणों (इन्फ्रारेड एवं अल्ट्रावायलेट) meal should be light and eating very early. If possible take milk and fruits only before 7 pm. के गर्म स्वभाव के कारण भोजन को पचाने की क्षमता No solid or liquid should be taken after sun होती है। कृत्रिम तेज प्रकाश जैसे सोडियम लैंप, मर्करी set.” (Page 260) लैंप, आर्क लैंप से निकलने वाले प्रकाश का यदि वर्णक्रम रात्रि शब्द का पर्यायवाची तमिस्रा है। तमः पूर्ण होने देखें तो स्पष्ट होता है कि उनमें भी ये दोनों प्रकार की से यह तमिस्रा कहलाती है। तमः समय में बना भोजन भी किरणें नहीं पाई जाती हैं। तामसी होता है। अस्तु सात्विक लोगों को तामस भोजन जैन धर्म में जमीकंद को अखाद्य या अभक्ष्य क्यों सर्वथा त्याज्य है। इसलिए रात्रि के समय बनाया गया बताया गया है उसका भी बड़ा वैज्ञानिक कारण है। जहाँ भोजन दिन में खाना भी सर्वथा तामसिक होने से वर्जित सूर्य की किरणें नहीं पहुँच पाती वहाँ असंख्यात सूक्ष्म है। सात्विक आहार केवल सूर्य के प्रकाश में ही बनाया जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। जमीन के अंदर अंधकार में हुआ और ग्रहण करने से सुख, सत्व और बल का प्रदाता होने वाले, आलू, मूली, अरबी आदि कंदमूलों में असंख्यात होता है। आरोग्यदाता सूर्य के प्रकाश में धर्म, अर्थ और सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति हो जाने से उनका त्याग बताया मोक्ष पुरुषार्थ किया जाता है, जबकि काम पुरुषार्थ के गया है। रात्रि अंधकार युक्त तामसी हुआ करती है। उस लिए रात्रि होती है। समय असंख्यात जीव स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने के कारण रात्रिभोजन का निषेध किया गया है। दिवा भोजन का वैज्ञानिक पहलू एक बात और अनुभव में आती है कि रोगी का रोग घड़ी दोय जब दिन चढ़े, पिछलो घटिका दोय। रात्रि में ज्यादा तकलीफदेह हो जाता है। रोगी का दिन इतने मध्य भोजन करे, निश्चय श्रावक सोय॥ आसानी से व्यतीत हो जाता है. लेकिन रात्रि तामस होने (किसनसिंहकृत क्रियाकोश-16) | के कारण वह रोग को बढ़ा देती है। दिन सात्विक होता है, जो सच्चा श्रावक होता है, वह दिन निकलने के दो जो रोग में फायदा पहुंचाता है। अतः रात्रि में भोजन करना घड़ा पश्चात तथा सूयास्त के दा घड़ा पहल हा भाजन | हानिकारक है। हमारे शरीर में सात्विक, राजस एवं तामस - जनवरी 2005 जिनभाषित 13. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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