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अर्थात् अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए इस लोक और परलोक में दुख देने वाले रात्रिभोजन का त्याग कर देना चाहिए। मौन पूर्वक भोजन करने से तप एवं संयम की वृद्धि होती है और भोजन के प्रति लोलुपता कम होती है। अतः व्रती श्रावक को नियम से मौनपूर्वक भोजन करना चाहिए। इससे उसके स्वाभिमान की रक्षा होती है और उसे याचनाजनित दोष नहीं लगता । मौन पूर्वक भोजन करने से भोजन के प्रति आसक्ति भाव उत्पन्न नहीं होता है । अतः शब्दात्मक द्रव्यश्रुत की विनय रूप पालन होता है । इससे मन और वचन की सिद्धि प्राप्त होती है। इस प्रकार न केवल अध्यात्म एवं धार्मिक दृष्टि से अपितु स्वास्थ्य और आयुर्वेद शास्त्र के पश्चात सांयकाल के भोजन के एक प्रहर पश्चात शयन करना चाहिए अन्यथा अजीर्ण आदि रोग उत्पन्न होते हैं। विवेकी पुरुषों को रात्रिभोजन का अवश्य परित्याग कर देना चाहिए।
संदर्भ
1. भव्योपदेश उपासकाध्ययन श्रावकाचार भाग तीन पृष्ठ 376
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सन्त शिरोमणि आचार्यरत्न श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के आध्यात्मिक एवं सारगर्भित प्रवचनों का प्रसारण 'साधना चैनल' पर प्रतिदिन रात्रि 9.30 से 10.00 बजे तक किया जा रहा है, अवश्य सुनें ।
श्रुतज्ञान प्रश्नावली प्रतियोगिता
परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागरजी महाराज के आशीर्वाद से श्रीमती सुशीला पाटनी (आर. के. मार्बल) मदनगंज- किशनगढ़, सुलोचनादेवी जयपुर, उषा देवी रारा आसाम, शोभादेवी रारा आसाम के कुशल निर्देशन में अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला संगठन द्वारा आचार्य जी के दीक्षा दिवस के अवसर पर श्रुतज्ञान प्रश्नावली प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
भौतिकता के इस युग में महिलाओं में अन्तर्निहित धार्मिक शक्ति को विकासशील और समुन्नत बनाकर जैनधर्म की प्रभावना करना इस प्रतियोगिता का मुख्य लक्ष्य है।
इस प्रतियोगिता में भक्तामर स्तोत्र, सामान्य ज्ञान, रक्षा बंधन, सावन-भाद्रपद मास के व्रतों, दशलक्षण धर्म के व्रतों संबंधित प्रश्नों के साथ-साथ वासपूज्य भगवान एवं आचार्य श्री शान्तिसागर जी के जीवन संबंधी प्रश्नों को समायोजित
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2. लाटी संहिता पृष्ठ 5- वही
3. वही श्लोक 47 एवं 48 पृष्ठ 6- वही 4. रात्रौ भुंजानानां यस्मादनिवारिता भवति हिंसा । हिंसा विरतैस्तस्मात्यक्तव्यारात्रिभुक्तिरपि । रागाद्युदय परत्वादनिवृत्तिर्नातिवर्तते हिंसा । रात्रि दिवमाहरतः कथं हि हिंसा न सम्भवति ॥ पुरूषार्थसिद्धयुपाय
(श्लोक 129 एवं 130 श्रावकाचार भाग एक) 5. स्वामिकार्तिकेयानुपेक्षागत श्रावकाचार - श्लोक 81 6. न श्राद्धं दैवतं कर्म स्नानं दानं न चाहुतिः । जायते यत्र कि तत्र नराणां भोक्तुमर्हति ॥ 25 ॥ ( धर्मसंग्रह श्रावकाचार पृष्ठ 123 ) 7. भुंजते निशि दुराशा यके गृद्धि दोष वश वर्तिनोजनाः ॥ 43 ॥ ( अमितगति श्रावकाचार)
8. वल्लभते दिननिशिथयोः सदा यो निरस्त यम संयम क्रियाः । श्रंग, पृच्छ शफ संग वर्जितो मण्यते पशुवयं मनीषिभिः ॥ 44 ॥ ॥ वही श्रावकाचार | जवाहर वार्ड, बीना (म. प्र. )
किया गया था। प्रतियोगिता में भाग लेने वाली महिलाओं ने संबंधित शास्त्रों एवं जीवन चरित्रों का अध्ययन कर अपनेअपने उत्तर प्रस्तुत किए। इस प्रतियोगिता में 375 प्रश्न पूछे गये एवं पूरे भारतवर्ष से लगभग 350 महिला प्रतियोगियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया ।
निम्न महिलाओं ने परीक्षा परिणाम स्वरूप प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त किया।
प्रथम स्थान : द्वितीय स्थान :
तृतीय स्थान:
श्रीमती बीना पाटनी, जयपुर । श्रीमती शशिप्रभा बज, मदनगंजकिशनगढ़
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1- कुमारी गरिमा बाकलीवाल, मदनगंज किशनगढ़
2- श्रीमती रश्मि पहाड़िया जयपुर ।
उपर्युक्त प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय के अतिरिक्त श्रीमती सुशीला पाटनी द्वारा अजमेर, किशनगढ़, नसीराबाद के प्रतियोगी विजेता महिला एवं पुरुषों को ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र नारेली अजमेर पर उन्हीं के द्वारा आयोजित 1 जनवरी 2005 को 'पंच कल्याणक मण्डल विधान' के आयोजन के पश्चात सभी प्रतियोगियों को पुरुस्कार से सम्मानित किया गया । भविष्य में यह प्रतियोगिता इसी तरह होती रहे ऐसी कामना करते हैं।
निर्मला पाण्ड्या, महामंत्री श्री ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र महिला समिति, नारेली, अजमेर
जनवरी 2005 जिनभाषित 15
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