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प्राकृतिक चिकित्सा
गर्भपात की प्राकृतिक चिकित्सा या सावधानियाँ
डॉ. वन्दना जैन दुर्घटना चाहे कैसी भी हो कोई भी हो, परन्तु वह न तो उठायें और न सरकायें। सीढियों पर चढ़ने उतरने का चोट अवश्य पहुँचाती है, तन और मन को। गर्भपात हो काम ज्यादा नहीं करें। ज्यादा देर नहीं बैठें। बैठना जरूरी जाना भी एक दुर्घटना ही है पर इसे कुछ उपायों द्वारा रोका | हो तो आलती--पालथी मारकर, वज्रासन या सुखासन में जा सकता है।
आराम से बैठें। रसोई बनाते समय ऊँचे स्टूल या कुर्सी पर शरीर में संचित दूषित मल (विष) तथा गर्भाशय में बैठे। ज्यादा देर बैठना हो तो पैरों के नीचे छोटा स्ट्रल संचित विजातीय विकार के सड़ने से गर्मी पैदा होती है, रखें। पैरों को मिलाकर खडी न हों। खडे होने पर पैरों को जो गर्भ को ठहरने नहीं देता नतीजन गर्भपात होता है। आगे पीछे, सुविधानुसार रखें। ऊँची ऐड़ी के जूते तथा शरीर तथा गर्भाशय में संचित दूषित पदार्थ को प्राकृतिक चप्पल नहीं पहनें। गर्भपात के लक्षण दिखते ही बिस्तर पर चिकित्सा द्वारा दूरकर गर्भाशय को शक्तिशाली बनाना ही विश्राम करायें। बिस्तर के पायदान की तरफ ईंट रखकर 6 गर्भपात रोकने की सही चिकित्सा है।
से 9 इंच उठा दें। कमर के नीचे तकिया रखें। पेडू तथा गर्भपात की संभावना को ध्यान में रखते हुए गर्भाधान | योनि पर मिट्टि की पट्टी या खूब ठंडे पानी से भीगा तौलिया के पहले ही चिकित्सा प्रारंभ कर देनी चाहिये। जिससे रखें इससे गर्भ की उत्तेजना कम होती है, तथा गुरुत्वाकर्षण गर्भस्राव नहीं होता। पेडू पर मिट्टी की पट्टी आधा घंटा दें के कारण गर्भपात रूक जाता है। गर्भपात की प्रवृत्ति वाली इसके बाद ठण्डा कटि स्नान, ठण्डा रीढ़ स्नान, गरम महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा विश्राम करायें। शौच भी ठण्डा कटि स्नान बदल 2 कर दें। लगातार कुछ दिनों तक बैड पैक में करायें। उठने पर रक्तस्राव होने लगता है, पूर्ण सूर्योदय के पूर्व 20 मिनिट चक्की चलाकर ठण्डा कटि स्वस्थ होने पर ही बिस्तर से उठने दें। घर पर या अन्य स्नान दें। यह 5 मिनिट लेने से गर्भजन्य विकारों से मुक्ति कार्यों में धीरे-धीरे लगें। गर्भपात प्राय: नियमित माहवारी मिलती है। सप्ताह में एक दो बार वाष्प स्नान, गर्भपाद काल में होता है। अत: उन दिनों सावधानी रखें। कुछ स्नान, गीली चादर लपेट तथा धूप स्नान रोगी की स्थिति महिलाओं में गर्भाधान के बाद भी दो तीन माह तक माहवारी के अनुसार दें। गर्भावस्था में गर्म उपचार बंद रखें। गर्भकाल के लक्षण दिखते हैं। ऐसी स्थिति में विश्राम करायें। सादे में प्रात:काल चक्की चलाना तथा ठण्डा कटि स्नान, दोपहर | गर्म पानी का एनिमा देकर पेट साफ रखें ठण्डा कटि स्नान में मिट्रि पट्टी तथा रात्रि में पेड़ की लपेट दें। कब्ज होने पर अथवा योनि पर ठण्डी पट्टी दें। प्रातः काल एक गिलास एनिमा दें।
पानी में एक नीबू तथा गुड़ मिलाकर पिएं। योग चिकित्सा
आहार चिकित्सा ___ गर्भाधान से पूर्व आसनों में कटि शक्ति विकासक, __ नाश्ते में अंकुरित (अथवा रात भर भीगी हुई) मूंग, उदरशक्ति विकासक, कोणासन, पादहस्तासन, जसुशीर्षासन, मोठ, गेहूँ, तिल, मूंगफली, मसूर, सोयाबीन, चना भीगा पश्चिमोतनासन, वज्रासन, उष्टासन. कर्मासन, योगमद्रा, हुआ। किशमिश, मुनक्का, खजूर, टमाटर, लौकी, पेठा या चक्कीचालन आसन, विस्तृत, पादासन, उत्तनपादासन, संतरे का रस दें गाजर व पालक लेते हों तो वह भी लें। धनुरासन, चक्रासन, शलमासन, भुजंगासन, सर्वांगासन,
भोजन में मोटे आटे की दो घंटे पहले गाजर या पालक, हलासन, अनलोम, विलोम, उजजयी, प्राणायाम तथा | चकुन्दर के रस में गुदी हुई रोटी, सब्जी, सलाद तथा दही शवासन करें। गर्भाधान के बाद इन आसनों को बंद रखें। गर्भावस्था में धीरे-धीरे सैर या चहल कदमी करना सर्वोत्तम ___ मध्यान्ह काल में अंकुरित गेहूँ, मूंगफली, तिल, केला, तथा संतुलित व्यायाम है।
खीरा, ककड़ी, कद्दू के बीज, नारियल तथा खजूर को गर्भवस्था में आगे झुकने वाला कोई भी कार्य नहीं पीसकर बनाया हुआ दूध एक गिलास तथा मौसमानुसार करें, पेट के बल नहीं लेटें। कमर को सीधा रखते हुए | फल, पालक, टमाटर का रस, दूध देने तथा नारियल का घुटनों से मोड़कर किसी भी चीज को उठायें। भारी वजन ) पानी या छाछ पर्याप्त मात्रा में लें। 28 जनवरी 2005 जिनभाषित
लें।
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