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जो कदाचि मर मनुष है, विकल अंग बिनु रूप । अलप आयु दुर्भग अकुल, विविध रोग दुख कूप ॥ (किसनसिंह कृत क्रिया कोष ) 4. रात्रि के समय यानि सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय के पूर्व भोजन करने वाले मनुष्य को मरकर उस पाप के फल से उल्लू, कौआ, बिलाव, गीध, संवर, सुअर, सांप, बिच्छु, गोध आदि निकृष्ट पशु पक्षी योनि में जन्म लेना पड़ता है। महाभारत के शांतिपर्व में नरक में जाने के चार दरवाजे बताए गए । उनमें पहला रात्रि के समय भोजन करना कहा गया है। परस्त्रीगमन, पुराना अचार, मुरब्बा आदि खाना और जमीकंद खाना ये अन्य चार बातों में हैं।
5. रात्रि में वातावरण का ताप, सूक्ष्म जीवों एवं अनेक त्रस जीवों की उत्पत्ति में अनुकूलता पैदा करता है। ये सभी जीव समुदाय जरा सा हवा का झोंका लगने से देखते ही देखते मर जाते हैं और उनका कलेवर भोजन में मिल जाता है, ऐसी स्थिति में रात्रिभोजन का त्याग न करने वाले को मांस का त्यागी कैसे कहा जा सकता है, अर्थात् नहीं कहा जा सकता I
में
6. भोजन पकते समय पाक भोज्य की गंध वायु फैलती है, उस वायु के कारण उन पात्रों में अनेक जीव आकर पड़ते हैं । अतः दयाधर्म पालन करने वाले पुरुषों को, रात्रिभोजन को विष मिले अन्न के समान मानकर सदा के लिए त्याग कर देना चाहिए।
रात्रिभोजन के पाप से मनुष्य नीच कुलों में दरिद्री के रूप में उत्पन्न होता है। उस पाप से अनेक दोषों से परिपूर्ण राग द्वेष से अंधी, शील रहित, कुरूपिणी और दुख देने वाली स्त्री मिलती है। बुरे व्यसनों में रंगे हुए पुत्र और क्लेश देने वाले भाई बंध मिलते हैं। वह भव-भव में दरिद्री, कुरूप, लंगड़ा, कुशीली, अपकीर्ति फैलाने वाला, बुरे व्यसनों का सेवन करने वाला, अल्पायु वाला, अंग भंग शरीर वाला, दुर्गतियों में जाने वाला, कुमार्गगामी और निंद होता है । अतः रात्रि में आहार का त्याग कर देने से वह अपनी इंद्रियों को वशीभूत करके संयमी बनता है ।
7. जो पुरुष सूर्य के अस्त हो जाने पर भोजन करते हैं, उन पुरुषों को सूर्य द्रोही समझना चाहिए। जैसा कि धर्म संग्रह श्राविकाचार में कहा गया है ।
यो मित्रेऽस्तंगते रक्ते विदध्याद्भोजनं जन । तद् द्रोही स भवेत्पापः शवस्योपरि चाशनम् ॥
12 जनवरी 2005 जिनभाषित
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रात्रिभोजन निषेध : वैज्ञानिक दृष्टिकोण
सूर्य प्रकाश पाचन शक्ति का दाता है। जिनकी पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती है, उसके लिए डाक्टर की यही सलाह होती है कि वह दिन में हल्का भोजन करे। उसके लिए रात्रि में भोजन करने का निषेध किया जाता है। रात्रि के समय हृदय और नाभि कमल संकुचित हो जाने से भुक्त पदार्थ का पाचन गड़बड़ हो जाता है। भोजन करके सो जाने पर वह कमल और भी संकुचित हो जाता है और निद्रा में आ जाने से पाचन शक्ति घट जाती है।
आरोग्य शास्त्र में भोजन करने के बाद तीन घंटे तक सोना स्वास्थ्य की दृष्टि से विरुद्ध है। सूर्य के प्रकाश में नीले आकाश के रंग में सूक्ष्म कीटाणु स्वतः नष्ट हो जाते हैं। रात्रि में कृत्रिम प्रकाश जितना तेज होता है उसी अनुपात में सूक्ष्म ' जीवों की उत्पत्ति उतनी ही अधिक होती है जो भोजन में गिर जाते हैं। गिर जाने से हिंसा का पाप तो लगता ही है साथ ही अनेक असाध्य रोग पेट में उत्पन्न हो जाते हैं ।
सूर्य के प्रकाश में अल्ट्रावायलेट किरणें एवं अवरक्त लाल किरणें होती है, जिस प्रकार एक्स रे मांस और चर्म को पार कर पाती है। उसी प्रकार उक्त दोनों प्रकार की किरणें कीटाणुओं के भीतर प्रवेश कर उन्हें नष्ट करने की शक्ति रखती हैं। यही कारण है कि दिन में सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति नहीं होती है। उक्त दोनों प्रकार की किरणें सूर्य के दृश्य प्रकाश के साथ रहती हैं।
जैसा कि हम जानते हैं कि ऑक्सीजन प्राण वायु होती है जो श्वांस लेने में लाभकारी और उपयोगी है तथा कार्बोनिक गैसें हानिकारक होती हैं। वृक्ष दिन में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कार्बोनिक गैसों का अवशोषण करके ऑक्सीजन गैस का उत्सर्जन करते रहते हैं । इस प्रकार दिन में पर्यावरण शुद्ध और स्वास्थ्यकर रहता है जबकि रात्रि में वृक्ष कार्बोनिक गैसों को मनुष्य की भांति छोड़ते हैं और पर्यावरण अशुद्ध हो जाता है। अत: दिन के शुद्ध वायुमंडल में किया गया भोजन स्वास्थ्यकर और पोषण 'युक्त होता है। भारतीय प्राचीन ग्रंथों में एवं वेदों में सूर्य को भगवान की संज्ञा से उपहृत कर उसकी उपासना की जाती है। कई लोग जैन और जैनेतर रविव्रत, रविवार को करते हैं। कुछ सूर्य को जलार्पण करते हैं । यह सब इसलिए किया जाता है कि सूर्य रोगहारक शक्ति रखता है ।
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