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जल में जीवत्व : सार्थक कदम का इन्तजार
"जिनभाषित" के अक्टूबर 2004 के अंक में प्रकाशित श्री प्रभुनारायण मिश्र का लेख "जल सोचता, अनुभव करता और व्यक्त करता है" रोचक है, लेकिन इसे जल में जीवत्व की सिद्धि के लिए प्रभावक कदम मानना शायद उचित न होगा। इसके लिए अभी बहुत अधिक शोध की आवश्यकता है। जल के ऊपर इस प्रकार के अनेक प्रयोग विश्वभर में चल रहे हैं जिनका विस्तृत विवरण इन्टरनैट के जरिए आसानी से प्राप्त करा जा सकता है। इनके मूल में है, यह जानना जरूरी है।
क्या
प्रत्येक सजीव और निर्जीव के चारों ओर एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र होता है जिसे Aura या आभामण्डल भी कहते हैं। सजीव और निर्जीव के आभामण्डल में एक मूलभूत अन्तर पाया जाता है। सजीव का आभामण्डल (विद्युत - चुम्बकीय क्षेत्र) समय के साथ-साथ बदलता रहता है, जबकि निर्जीव का आभामण्डल स्थिर होता है। किर्लियन फोटोग्राफी द्वारा इनके चित्र भी लिए जा चुके हैं। सजीव (उदाहरण के तौर पर मनुष्य) के आभामण्डल में परिवर्तन होते रहने का एक विशेष कारण है । मनुष्य जैसा सोचता है तथा जैसा व्यवहार करता है उसी के अनुरूप उसका विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र बनता - बिगड़ता रहता है। जैसे उसके भाव होंगे, उसी के अनुरूप उसका विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र होगा। इस विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र को हम तैजस शरीर के रूप में भी ग्रहण कर सकते हैं।
चूँकि आभामण्डल की प्रकृति विद्युत-चुम्बकीय होती है, अतः ये अपने में से बहुत मंद तीव्रता के फोटोन कण भी उत्सर्जित करते रहते हैं, जो कि पौद्गलिक होते हैं। एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र दूसरे विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र पर अपना प्रभाव डालते रहते हैं । जब कोई मनुष्य अच्छे विचारों के साथ किसी निर्जीव (जैसे-पानी) को ले जा रहा होता है, तो उस पानी पर एक विशेष प्रकार की छाप छोड़ता है, जिसे Signature भी कहा जाता है। यह छाप कुछ इस प्रकार की होती है, जिससे पानी के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र में एक सुन्दर चित्र बन सके। और यदि कोई बुरे भावों से इस जल को ले जा रहा है, तो उस पर कुछ इस प्रकार की छाप बनेगी कि वह कुरूप और विकृत दिखे। उक्त लेख में कुछ इस प्रकार के प्रभाव का ही वर्णन किया गया है।
पानी के विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र (आभामण्डल) पर मात्र सजीव ही अपना प्रभाव डाल सकते हैं, ऐसा नहीं है। उसे कृत्रिम तरीके से भी प्रभावित किया जा सकता है। एक 10 जनवरी 2005 जिनभाषित
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डा. अनिल कुमार जैन
विदेशी कंपनी ने एक उपकरण बनाया है, जिसका नाम रखा है - एक्वा वोर्टेक्स (Aqua vortex) । यह महँगा भी नहीं है । इसमें मुख्यत: स्पाइरल आकार का किसी धातु का पाइप होता है । यदि साधारण जल को इस पाइप में से प्रवाहित कराया जाय, तो उनकी (कंपनी की) भाषा में यह जल जीवन्त हो उठता है । क्योंकि इस जल का विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र एक विशिष्ट आकृति प्राप्त कर लेता है। इस जल में ऊर्जा की मात्रा अधिक हो जाती है तथा पीने के बाद मन को सन्तुष्टी देता है। दो जर्मन वैज्ञानिकों Wolfram तथा Theodor schwrak ने 'drop picture method ' द्वारा अलग-अलग जल के फोटो लिए । साधारण जल में मात्र छितरे हुए बिंदु ही आये, जबकि एक्वा वोर्टेक्स से प्राप्त जीवन्त जल का सुंदर सा चित्र आया। (चित्र संलग्न है) । यदि इस जीवन्त जल में कुछ अशुद्धि हो, तो सुन्दर आकृति विकृत होने लगती है ।
जैन दर्शन में तैजस वर्गणाओं की विस्तृत चर्चा मिलती है । इन पर अच्छी तरह विचार करने पर उक्त सभी प्रयोगों का स्पष्टीकरण हो जाता है। तैजस-वर्गणाओं द्वारा कई उन बातों की व्याख्या भी संभव है जिनका प्रचलन भारतीय परंपराओं में सदियों से चला आ रहा है और उन्हें मात्र रूढ़ी तथा अवैज्ञानिक मानकर छोड़ दिया जाता है
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एक निवेदन- आज के वैज्ञानिक युग में यह आवश्यक प्रतीत होने लगा है, कि जैन लोग अपनी एक प्रयोगशाला स्थापित करें, जिसमें विभिन्न जैन मान्यताओं को प्रायोगिक रूप में आम लोगों को दिखाया जा सके तथा जैन सिद्धान्तों की वैज्ञानिकता स्थापित की जा सके। दिगम्बर सम्प्रदाय में पंच कल्याणकों, विधानों और चातुर्मासों में कुल मिलाकर अनुमानत: सौ करोड़ रुपये प्रति वर्ष तो खर्च होता ही होगा। यदि नव निर्माण आदि के खर्चे को और जोड़ लें, तो यह राशि कहीं काफी अधिक बैठेगी। यदि इस राशि का सौवां हिस्सा इस दिशा में खर्च किया जाये, तो मैं समझता हूं कि वह कहीं अधिक सार्थक सिद्ध होगा। हम अपनी आने वाली पीढ़ी को जैन सिद्धांतों को प्रत्यक्ष प्रयोगशाला में सिद्ध करके दिखा सकेंगे । श्वेताम्बर - मूर्तिपूजक - सम्प्रदाय तथा तेरापंथसम्प्रदाय में इस प्रकार के कदम उठाये जा चुके हैं। यदि कोई दिगम्बर सन्त इस कार्य में रूचि दिखाये तो यह एक अभिनन्दनीय कदम होगा।
SST, NEW BUILDING, ONGC, NAZIRA-785685 (ASSAM).
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