Book Title: Jinabhashita 2005 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 8
________________ प्रत्येक दिशा में दो-दो प्रहर तक नन्दीश्वर आदि महापूजायें । ऊँचाई पर बने जिनालय और इस पर 55 फीट ऊँचे गुम्बज करते हैं। इस महापूजा में सौधर्म इन्द्र प्रमुख होता है। वही और स्वर्णकलश से शोभित 30 फीट ऊँचा शिखर इस सभी प्रतिमाओं का अभिषेक करता है। शेष सभी इन्द्र तरह कुल मिलाकर 121 फीट ऊँचा यह गगनचुम्बी द्वीप अभिषेक और पूजा में सौधर्म इन्द्र की मदद करते हैं। इन अद्वितीय है। जिनालय के भीतरी भाग की परिक्रमा परिधि सभी की देवियाँ आठ मंगलद्रव्यों को धारण करती हैं। 304 फीट है। जो सब तरफ 10 फीट चौड़ी है। बाहर का अप्सरायें भक्तिभाव से नृत्य करती हैं और शेष सारे देव परिक्रमा पथ लगभग 400 फीट की परिधिवाला है और अभिषेक प्रेक्षणिका में खड़े होकर इस उत्सव को देखने | सब ओर 15 फीट चौडा है। के लिए आतुर रहते हैं। ___ चार द्वारों पर अत्यन्त सुन्दर चार तोरण शिखर हैं। __ पूजा होने पर सभी इन्द्र अपने परिवार सहित सभी ऊपर जाने वाली संगमरमर की सीढ़ियों के दोनों ओर जिनमन्दिरों की परिक्रमा करके ढाईद्वीप सम्बन्धी पाँचों लगाई रेलिंग मन मोह लेती है। जिनालय के भीतरी भाग मेरु पर्वतों की चारों दिशाओं में स्थित अस्सी भव्य जिन में 52 ढोल के समान आकृतिवाले गोलाकार पर्वतों को मंदिरों की परिक्रमा, पूजा, वन्दनाविधि सम्पन्न करते हैं और वापिस स्वर्गलोक में लौट जाते हैं। यह पूजा उनके बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित किया गया है। चारों प्रवेश द्वारों सातिशय पुण्य का कारण बनती है। हम चाहें तो इस के समक्ष स्तम्भों पर संगमरमर पर उत्कीर्ण प्रथम तीर्थंकर नन्दीश्वरद्वीप में हर अष्टाह्निका पर्व में पूजा वन्दना करके भगवान ऋषभदेव, अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर, प्रमुख सातिशय पुण्य अर्जित कर सकते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द और तपोनिष्ठ आचार्य विद्यासागर जी श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पिसनहारी मढिया, | महाराज की वीतराग छवि सच्चे देव-गुरु-शास्त्र के प्रति जबलपुर (म.प्र.) के प्रांगण में नवनिर्मित विशाल एवं अनुराग जगाने में सक्षम हैं। भव्य नंदीश्वरद्वीप-जिनालय संगमरमर और ग्रेनाइट से सजाया गया है। लगभग एक सौ दस फीट व्यास वाले गुम्बज में ___ इस समूची रचना को चारों ओर से आच्छादित करने एक भी आधार स्तम्भ नहीं है और इस विशाल गुम्बज के वाला मनोरम उद्यान कृत्रिमता के बीच भी प्राकृतिक सौंदर्य नीचे 132 जिनबिम्ब, 52 जिनालय और 5 सुमेरु पर्वतों का आभास देता है। लगता है क्षणभर को स्वर्ण की देहरी की संरचना अपने आप में अद्भुत है। जमीन से 26 फीट | पर खड़े होकर हमने समूचा स्वर्ग ही देख लिया हो। शीतकालीन शिविरों का भव्य आयोजन श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर, जयपुर द्वारा प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी महाकवि ज्ञानसागर छात्रावास में शीतकालीन अवकाश में विभिन्न शिविरों का आयोजन किया गया। जिसके अन्तर्गत प्रातः बी.डी.मण्डल साहब द्वारा योग शिक्षण शिविर, श्री दिनेश गंगवाल द्वारा वास्तु शिक्षण शिविर एवं श्री राधाबल्लभ द्वारा संस्कृत संभाषण का अभ्यास कराया गया। साथ में शारीरिक विकास के लिए क्रीड़ा प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। इस तरह 25 दिसंबर 2004 से 02 जनवरी 2005 तक आयोजित शिविरों में सफल समापन एवं परस्कार वितरण संस्थान के कोषाध्यक्ष श्री ऋषभ जी जैन, संस्थान के अधिष्ठाता श्री पं. रतनलाल जी बैनाड़ा एवं उप अधिष्ठाता श्री राजमल जी बेगस्या द्वारा किया गया। 'पं. मनोज शास्त्री भगवां' गया नगर में अभूतपूर्व धर्म प्रभावना पर्वराज पर्दूषण में श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर से पधारे विद्वान पं. प्रकाशचन्द्र जी पहाड़िया एवं विदुषी श्रीमती पहाड़िया द्वारा दशधर्म, तत्त्वार्थसूत्र इष्टोपदेश का रसास्वादन कराया गया। समाज में पहाड़िया जी की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। समाज ने संस्थान को 1 लाख 16 हजार रुपये सहयोग राशि भेंट की। 6 जनवरी 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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