Book Title: Jinabhashita 2003 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 12
________________ काव्य, दर्शन और अध्यात्म की अन्यतम उपलब्धिः मूकमाटी डॉ. के.एल. जैन आचार्य विद्यासागर जी ने विपुल साहित्य का सृजन किया । मन में 'नर्मदा के नरम कंकर' को शंकर बनाने की बात मन में है, जिसमें जनकल्याण और लोककल्याण की भावना समाहित | आयी होगी। तोता' को रोता हुआ देखकर कवि का मन करूणा है। उन्होंने शास्त्रों के अथाह सागर से विशेषतः कविता के मोती | से भर उठा होगा, यह सोचकर की आँसुओं के जल से अंतर की चुनने का जो भगीरथ प्रयास किया है, वह काफी अद्भुत और | मलिनती जाती रहती है और मन प्रभु भक्ति के लिए निर्मल हो विस्मयकारी है। काव्यशास्त्र की दृष्टि से ऐसा माना गया है कि | जाता है। वह (कवि) प्रभु के गुणों का गान करता हुआ चेतना अनुभूति की घनीभूत तीव्रता ही कविता को जन्म देती है। भावों | की गहराईयों में उतरा होगा, जहाँ केवल समर्पण की सच्ची साधना की यही तीव्रानुभूति आचार्य श्री की कविताओं में भी देखने को | के मर्म की अनुभूति हुई होगी। परमात्मा की सत्ता में अपने अस्तित्व मिलती है । यद्यपि वस्तुतत्व की दृष्टि से इन कविताओं का मूलस्वर | के विसर्जन का भाव जाग्रत हुआ होगा। ऐसी स्थिति में 'डूब भले ही आध्यात्म रहा हो, लेकिन इन कविताओं में जीवन के | जाने की आशंका जाती रही होगी। केवल प्रभु की भक्ति रूपी जिन उदात्त आदर्शों का निरूपण किया गया है, वास्तव में वही | जल में 'डुबकी लगाने का भाव ही शेष रहा होगा। यहाँ आकर कविता का प्राणतत्व माना गया है। क्योंकि कविता के मूल में कवि भक्ति के सागर में अवगाहन करता है और इस संसार में मानव जीवन और उसके अन्तः करण में उठने वाले भावों को ही | भटक रहे प्राणियों को भी आनंद के सागर में डुबकी लगाने की कवि शब्द-बद्ध करता है और यही कार्य आचार्य श्री ने भी किया है। | सलाह देता है। सृष्टि के कण-कण में सुख, शांति और समृद्धि यहाँ पर हम आचार्य श्री द्वारा विरचित 'मूकमाटी' के | फैलने लगे। सृष्टि से सारे संताप दूर हो जायें और कण-कण में सम्बन्ध में कुछ कहें, इसके पूर्व हम आचार्य श्री के उस काव्यात्मक मुस्कान विखर जाये। जड़ पदार्थ भी चेतन हो उठे। माटी महकने अवदान की संक्षेप में चर्चा करेंगे जिसके कारण 'मूकमाटी' की | लगे। उसमें भी स्पंदन शुरू हो जाय, तो मानो कवि का प्रयोजन रचना संभव हो सकी। फिर आचार्य श्री की 'मूकमाटी' ही एक | सिद्धि को प्राप्त कर ले। और फिर ऐसा ही हुआ- 'मूकमाटी' के ऐसी अनुपम कृति है जो उनकी अक्षयकीर्ति को युगों-युगों तक | रूप में। आचार्य श्री की कवि कलम के स्पर्श से माटी बोल उठी। अक्षुण्ण बनाये रखने में समर्थ होगी। दूसरे शब्दों में हम यह भी 'मूकमाटी' तो बोली ही, लगता है असंख्य हृदयों में धर्म की कह सकते हैं कि 'मूकमाटी' एक ऐसी कालजयी कृति है, जिसे | अनुगूंज के स्वर गुंजायमान होने लगे। 'मूकमाटी' ने साहित्यसमय की पर्ते उसके जनकल्याणकारी वैभव को कभी भी धूमिल | जगत को आंदोलित कर दिया। एक ऐसी हलचल पैदा कर दी कि नहीं बना सकेंगी। विद्वान, कवि, आलोचक और साहित्य प्रेमी इस 'मूकमाटी' के कहा गया है कि कविता मन की अतल गहराइयों से | स्पंदन को सुनने और समझने के लिए लालायित हो उठे। आज उठती हुई अनुभूतियों की तरंग है। यही तंरगें जब शब्दों के | यह कृति साहित्य जगत में उस स्थान की अधिकारिणी माने जाने माध्यम से व्यक्त होकर जन-जन के हृदय को अनुरंजित करती हुई लगी जहाँ कवि प्रसाद की 'कामायनी', दिनकर की 'उर्वशी' और अतीन्द्रिय आनंद की अनुभूति कराती है तो कविता धन्य हो जाती पंत का 'लोकायतन' हुआ था। इसलिए कि महाकाव्य की सम्पूर्ण है। कविता को यह गौरव 'मूकमाटी' के माध्यम से आचार्य श्री ने विशेषताओं के साथ-साथ इस कृति में आधुनिक युग की उन नाना रूपों में प्रदान किया है। मूलभूत समस्याओं का उचित समाधान किया गया है, जो कृति के अनेक कवियों ने कविता का जन्म वेदना और पीड़ा से | कालजयी होने के लिए आवश्यक है। माना है। 'पंत' ने भी कहा है- "वियोगी होगा पहला कवि, जहाँ तक साहित्य जगत् में किसी रचनाकार की पहचान आह ! से निकला होगा गान । उमड़कर आँखों से चुपचाप, वहीं | का प्रश्न है तो हम यही कह सकते हैं कि किसी कवि या साहित्यकार होगी कविता अनजान।"............. यहाँ पर भी कवि के मन में | की वे कुछ एक रचनाएँ ही हुआ करती हैं जो उसकी पहचान को सांसारिक भोंगों में लिप्त मानव के अंतहीन दुःखों के प्रति वेदना कायम करती हैं। इस दृष्टि से यदि हम अतीत की ओर झांके तो की हूक उठी होगी और करुणा के बादल कवि के अंतस्लोक में | ज्ञात होगा कि जायसी की पहचान के लिए 'पद्मावत', तुलसी घुमड़ने लगे होंगे। आहों की बिजलियाँ चमकी होंगी और अंतर | की पहचान के लिए 'रामचरित मानस' केशव की पहचान के लए का कोना-कोना पर्वत की पीर की तरह पिघल कर अनजान झरने | 'रामचंद्रिका', प्रेमचंद्र की पहचान के लिए 'गोदान', रेणु की की तरह कविता के रूप में प्रवाहित हुआ होगा, तभी तो कवि के | पहचान के लिए 'मैला आँचल', प्रसाद की पहचान के लिए 10 अगस्त 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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