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साहस सहंस स्वभावी।"
इस तरह हम देखते हैं कि आचार्य श्री की यह कृति 'मूकमाटी'का कवि'संत' और 'साधक' होते हुए जनवादी अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। समकालीन समय में जीवन में है। कवि ने सामाजिक अव्यवस्थाओं का यथार्थ संकेत करने के | उत्पन्न हो रही नानाविध समस्याओं का समाधान कवि ने जिस साथ-साथ उनका आदर्श परक समाधान भी सहज रूप में प्रस्तुत सरलता से इस कृति में किया है वह अपने आप में एकदम किया है
सामयिक और सार्थक है। दूसरी ओर इसमें समकालीन समय के "अब धन संग्रह नहीं
जिन शाश्वत मूल्यों के संकट को उठाकर उनका समाधान किया जन संग्रह करो
गया है वह भी एकदम सामयिक है। आज हम देखते हैं कि चारों
ओर जीवन-मूल्यों का जिस तीव्रता के साथ हास हो रहा है उसके बाहुबल मिला है तुम्हें
रोकने के लिए आचार्य श्री की यह कृति अपने अनूठे उपायों का करो पुरूषार्थ सही
अनुक्रम करती है। मूकमाटी पाश्चात्य सभ्यता के कारण पनप रहे पुरूष की पहचान करो सही,
भौतिकवाद को रोकने का एक सशक्त माध्यम भी है, जो इस बात परिश्रम के बिना तुम
की ओर संकेत करती है कि जीवन का सार भोग में नहीं योग में नवनीत का गोला निगलो भले ही,
हैं, आसक्ति में नहीं विरक्ति में है, विराधन में नहीं आराधना में है कभी पचेगा नहीं वह
और यही कारण है कि मूकमाटी साहित्य जगत् में कालजयी होने प्रत्युत जीवन को खतरा है।"
की सशक्त दावेदार रचना बन गई है। मूकमाटी में समकालीन राजनीति, राजनैतिक दलों, न्याय-
आचार्य श्री की 'मूकमाटी' आधुनिक हिन्दी कविता के व्यवस्था, भाग्य, पुरूषार्थ, नियति, काल, संस्कार, मोह, स्वप्न | क्षेत्र में जिन बिंदुओं को लेकर उपस्थित हुई है, उसने जीवन में कला, जीव, अध्यात्म, दर्शन, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि की हताशा, पराजय और कुण्ठा के स्थान पर जिस आशा, पुरूषार्थ व्याख्या सामयिक संदर्भो में की गई है। यहाँ तक की कवि ने और स्थाई मूल्यों का संचार किया। वह अपने आप में अन्यतम ही समकालीन समय में बढ़ते हुए आतंकवाद पर अपनी गहरी चिंता माना जायेगा। 'मूकमाटी' हमें आदर्शवादी समाज की संरचना की व्यक्त की है
दृष्टि देती है, सदाचरण की शिक्षा देती है और साथ ही साथ एक "जब तक जीवित है आतंकवाद
ऐसी जीवन दृष्टि भी प्रदान करती है जिससे व्यक्ति साधक की शांति का श्वास नहीं ले सकती
श्रेणी में पहुँच जाता है। "आधुनिकता की परम्परा से हटकर धरती यह, ये आँखे अब
मूकमाटी महाकाव्य ने सामुदायिक चेतना की पृष्ठ भूमि में आतंकवाद को देख नहीं सकती
आध्यात्मिक अभ्युत्थान को जिस रूप में उन्मेषित किया है वह ये कान अब
वास्तव में बेजोड़ है।" इस रूप में 'मूकमाटी' नई कविता का आतंक का नाम नहीं सुन सकते ।
एक सशक्त हस्ताक्षर है। यह जीवन की कृत संकल्पित है कि
कुल मिलाकर मूकमाटी के विषय में इतना कहना ही उसका रहे या इसका
पर्याप्त होगा कियहाँ अस्तित्व एक का रहेगा।"
1. मूकमाटी आधुनिक युग का एक ऐसा महाकाव्य है हम देखते हैं कि आज यह सम्पूर्ण सृष्टि अनेक संकटों के | जिसमें सामयिक समस्याओं का समाधान अत्यंत सरलता के साथ दौर से गुजर रही है। जिसमें विश्वास का संकट सबसे बड़ा संकट | किया गया है। हे। अराजकताओं की जननी एक प्रकार से अविश्वास ही है। | 2. विज्ञान के इस विनाशकारी युग में इस कृति के माध्यम आचार्य श्री ने 'विश्वासभाव' को हृदय में भरने के लिए प्रेरित | से ऐसे सूत्रों का सूत्रपात हुआ है जिसे अंगीकार कर इस विश्वव्यापी किया है
विनाश को रोका जा सकता है। विश्व शांति स्थापित करने में यह "क्षेत्र की नहीं
कृति मूलमंत्र का काम करेगी। आचरण की दृष्टि से
3. मूकमाटी को पढ़ने के उपरांत विकार युक्त हृदय भी
निर्मल बन जाता है। ऐसी स्थिति में भौतिकता के कीचड़ में फंसी शब्दों पर विश्वास लाओ,
यह सृष्टि इस कृति के द्वारा अपना आत्म कल्याण कर सकती है। हाँ। हाँ।
4. मूकमाटी के माध्यम से आचार्य श्री ने सत्यम्, शिवम् विश्वास को अनुभूति मिलेगी
ओर सुन्दरम् की विराट् अभिव्यक्ति के मुक्ति द्वार खोलने में जिस मगर
कलात्मकता का परिचय दिया है उससे सरल हृदयों में, धर्म, मार्ग में नहीं, मंजिल पर।"
दर्शन, कर्म, संस्कृति और आध्यात्म के पावन पंचामृत की
12 अगस्त 2003 जिनभाषित
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