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वस्त्र परिवर्तन करने का मुहूर्त :
पश्चिम एवं मंगल तथा बुधवार को उ. फाल्गुनी नक्षत्र में उत्तर नक्षत्र -- रेवती, उ. फाल्गुनि, उत्तराषाढ़ा, उ.भाद्रपद, रोहिणी, | दिशा की ओर नहीं जाना चाहिये। पुष्य, पुनर्वसु, अश्विनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा,
शुभ नक्षत्र - अश्विनी, पुनर्वसु, अनुराधा, मृगशिरा, पुष्य, धनिष्ठा।
रेवती, हस्त, श्रवण, धनिष्ठा उत्तम हैं । तिथि 2/3/5/7/10/11/13 वार- बुध, गुरु, शुक्र, रवि
केवलज्ञानप्रश्नचूड़ामणि पृष्ठ 175 तिथि - 2/3/5/6/7/8/10/11/12/13/15 -
उपरोक्त बिन्दुओं के माध्यम से कोशिश की गई है कि केवल ज्ञान प्रश्नचूड़ामणि (पृष्ठ 178 पर) यात्रा मुहूर्त :
आपके दैनन्दिनी जीवन में वास्तु सम्बन्धी सभी जिज्ञासाओं का सब दिशाओं में यात्रा के लिये नक्षत्र-हस्त, पुष्य, अश्विनी,
समाधान हो। मुझे अत्यन्त हर्ष होगा जब आप उपरोक्त वास्तु अनुराधा चारों दिशाओं के लिये शुभ होते हैं परन्तु मंगल, बुध, | विज्ञान से सम्बन्धित नियमों की अनुपालना कर बोधि और समाधि शुक्रवार को दक्षिण में नहीं जाना चाहिये।
की प्राप्ति करें। इस अकिंचन को विज्ञजन सुझाव दें। वार शूल और नक्षत्र शूल
"नमन वास्तुकला" ___ ज्येष्ठा नक्षत्र - सोमवार और शनिवार को पूर्व, पूर्वाभाद्रपद
835, मोहन वाटिका के पीछे नक्षत्र और गुरुवार को दक्षिण शुक्रवार को और रोहिणी नक्षत्र को
महावीर नगर, जयपुर 302018 (राज.)
बोध कथा
कपट का फल
__एक बार कोई गीदड़ रात के समय जंगल में से भागकर | आज्ञा का पालन करना होगा। जो मेरी आज्ञा न मानेगा, वह | किसी गाँव में आ गया, और जब उसे कहीं बाहर जाने का रास्ता दण्ड का भागी होगा।' न मिला तो एक घर में घुस गया। गीदड़ को घर में देखकर सब जानवरों ने सोचा- बात तो ठीक मालूम होती है। इसका लोग उसे मारने दौड़े। गीदड़ भागता भागता घर के बाहर आया, | रंग-ढंग हम लोगों से भिन्न है, इसके ऊपर कोई दैवी कृपा जान परन्तु वहाँ कुत्ते उसके पीछे लग गये, और वह एक नील के | पड़ती है। कुण्ड में गिर पड़ा।
जानवरों ने कहा, 'महाराज, आपने बड़ी कृपा की जो | नील कुण्ड में पड़ा हुआ गीदड़ बार-बार ऊपर चढ़ने | यहाँ पधारे। हम सब आपके नौकर हैं, कहिए क्या आज्ञा है?' का प्रयत्न करता, मगर फिर नीचे गिर पड़ता। अन्त में एक ज़ोर | खसद्रुम ने उत्तर दिया, 'तुम लोग मेरे लिए फ़ौरन ही की छलाँग मारकर वह कुण्ड के बाहर निकल आया। कुण्ड से | हाथी का प्रबन्ध करो।' बाहर निकलते ही गीदड़ जंगल की ओर भागा।
जानवर एक हाथी को पकड़ लाये। खसद्रुम बड़ी शान नील कुण्ड में पड़े रहने के कारण उसका सारा शरीर | से हाथी पर बैठकर जंगल में घूमने लगा। नीले रंग में रंग गया था। इसलिए मार्ग में उसे रीछ, गीदड़ आदि । एक दिन रात के समय सब गीदड़ रो रहे थे। खसद्रुम जो जानवर मिलते, उससे पूछते, 'यह तेरा रूप-रंग कैसे बदल भी उनके स्वर में स्वर मिलाकर रोने लगा। हाथी को जब गया है?'
मालूम हुआ कि कपटी गीदड़ उसकी पीठ पर चढ़ा फिरता है गीदड़ जवाब देता, 'जंगल के समस्त प्राणियों ने मिलकर | तो उसने उसे अपनी सूंड में लपेट, नीचे गिराकर मार डाला। मुझे खसद्रुम नामक राजा बनाया है। अब तुम सब लोगों को मेरी
"दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ"डॉ. जगदीशचन्द्र जी
20 अगस्त 2003 जिनभाषित
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