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समाचार
जब
। पहुँच कर मैं अपना सौभाग्य मनाता हूँ। उनकी भौतिक-देह से
अनेक मार्गदर्शन मिल रहे हैं, आत्मतत्व के उजास से तो सीधी, प.पू. आचार्य शिरोमणि विद्यासागर महाराज का | मोक्ष मार्ग की, दिशा मिल सकेगी। उनके पूजनीय गुरु आचार्य 36 वाँ दीक्षा-दिवस
विद्यासागर जी का आज 36 वाँ दीक्षा-दिवस-समारोह के अवसर जंगल वाले बाबा के नाम से सम्पूर्ण देश में प्रख्यात पू. | पर मुझे भी आमंत्रित किया गया, अतः उपस्थित मुनिश्रेष्ठ श्री चिन्मयसागरजी महाराज ने बड़े फुहारे के समीप
भारतभूषण जैन विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए बतलाया कि सम्पूर्ण
अ.भा. शाकाहार क्रांति परिषद विश्व में भारत को धर्म प्रधान प्रमुख राष्ट्र माना जाता है, यहाँ बड़े--
293, सरल कॉलोनी, गढ़ाफाटक, जबलपुर बड़े संत और साहित्यकार हुए हैं। मुनिवर ने प्रातः स्मरणीय श्री
श्री अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् की कार्यकारिणी तुलसी दास जी की दो पंक्तियां सुनाते हुए कहा- 'सुख, दारा और लक्ष्मी पापी के भी होय। संत-समागम, हरिकथा तुलसी दुर्लभ
बैठक सम्पन्न दोय।' संत समागम इसलिये महत्वपूर्ण है कि संत सत्य को नहीं | बुरहानपुर। श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् छोड़ता और सत्य के बिना कोई संत नहीं कहला सकता। आप | की कार्यकारिणी की बैठक श्री दि. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सभी ने संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के दर्शन किये हैं, | सांगानेर (जयपुर), राजस्थान में दि. २५ को श्रीमान् डॉ. फूलचन्द परन्तु सत्य यह है कि आप उनके वास्तविक दर्शन नहीं कर पाये
| जैन प्रेमी (वाराणसी) की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। बैठक में वित्त हैं, यदि किये होते तो आप भी उनकी तरह हो लिए होते। मैंने किये वर्ष २००३-०४ के लिये नये बजट का निर्धारण एवं विगत वर्ष के हैं. अत: मैं उनके पथ पर चल रहा हूँ, आपने किये होते तो आप
आय-व्यय का विवरण प्रस्तुत किया गया है। बैठक में अनेकान्त भी इस पथ पर दिख रहे होते।
मनीषी डॉ. रमेशचंद जैन, डॉ. शीतलचन्द जैन, डॉ. नेमिचन्द जैन, संसारी-आदमी मकान देखने की तरह संतों को देखने
डॉ. जयकुमार जैन, डॉ. विमला जैन, डॉ. सुपार्श्वकुमार जैन, डॉ. लगा है वह रंग, रूप, कद पर भर ध्यान देता है, संत के अंतर में
उर्मिला जैन, पं. अरूणकुमार जैन, डॉ. अशोक कुमार जैन, प्रेमचन्द समाये हुए सूर्य को देखने का प्रयास नहीं करता। आज राष्ट्र संत पृ. आचार्य श्री के इस दीक्षा-दिवस-समारोह पर आप सब जन
जैन, डॉ. विजयकुमार जैन, डॉ. सनतकुमार जैन, पं. कैलाशचंद संतों के अंतरंग के सूर्य का दर्शन करने का प्रयास करें और उनके
मलैया, श्रीमती इन्द्रा जैन आदि विद्वानों एवं विदुषियों ने भाग लेकर दर्शन को लेकर जीवन-यात्रा पर चलें।
समाज एवं धर्म विषयक सार्थक विचार-विमर्श में भाग लिया। मुनि चिन्मय सागर से पूर्व मुनि श्री पावन सागर जी महाराज
बैठक के उपरान्त विद्वत्परिषद् के विद्वानों ने श्री दि. जैन ने कहा कि पूज्य श्री को दीक्षा ग्रहण किये 35 वर्ष पूर्ण हो गये, वह | मंदिर संघीजी में विराजमान परम जिनधर्म प्रभावक, तीर्थोध्दारक. शब्द 'दीक्षा' उन्हें अध्यात्म की ओर ले गया। इस शब्द में पांच पुरातत्वीय विरासत के परम संरक्षक, मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी अक्षर और मात्राएँ गुम्फित हैं जो अनेक लोग नहीं जानते, ये पांचों महाराज, पू. क्षु. श्री गम्भीरसागर जी महाराज, पृ. क्षु. श्री धैर्यसागर पंच परमेष्ठी के द्योतक हैं। दीक्षा को धारण कर आत्मा में रमण जी महाराज के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर करना ही उसकी सार्थकता है। इसलिए 'दीक्षा' प्राप्त व्यक्ति ही | पर ब्र. संजय भैया एवं ब्र. जिनेश भैया भी उपस्थित थे। विद्वत्परिषद साधु कहलाता है। इसे क्रोध, माया, मान, लोभ आदि विकारी तत्वों
के विद्वानों के साथ एक साक्षात्कार में मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी का त्याग कर, तपश्चर्या धारण करनी होती है। बंदेलखण्ड का
महाराज ने कहा कि जिनधर्म, जिनागम एवं जिन चैत्यों के संरक्षण सौभाग्य है कि पू. आचार्य श्री ने अपने संघ को यहाँ ही विशाल
हेतु विद्वानों को समाज का मार्गदर्शन करना चाहिए। उन्होंने जैन रूप दिया था। दीक्षा के क्षण हर संत को जीवन भर, हर समय, याद
मंदिरों में बन्द होती जा रही शास्त्र स्वाध्याय/वचनिका की परम्परा रहते हैं फलतः वह अपनी चर्या बढ़ाता जाता है। समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित विद्वान--
पर चिन्ता व्यक्त की और कहा कि जो विद्वान जिस स्थान पर रहते लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री सुशील तिवारी ने अपने उद्बोधन में |
हैं, उन्हें वहाँ के मंदिरों में प्रतिदिन रात्रिकालीन शास्त्र स्वाध्याय की कहा कि गतवर्ष मंडला के जंगलों में संयम और तप की कहानी
परम्परा प्रारंभ करना चहिए। लिखने वाले महान् संत श्री चिन्मय सागर जी के विचार जानने जब
बैठक से पूर्व दिगम्बर जैन वानप्रस्थ आश्रम के उद्घाटन उनके पास भास्कर-सम्पादक के रूप में पहँचा, तो उनकी दैनिक- के अवसर पर मुनिश्री संघ के सान्निध्य में श्री अ.भा.दि. जैन चर्या से बहुत प्रभावित हुआ और उनके वात्सल्य में बंध गया। विद्वत्परिषद् के मुखपत्र विद्वद-विमर्श का विमोचन श्री मदनलाल यद्यपि बार-बार उनसे मिलना न हो सका किन्तु आज उनके समीप । जैन ने किया।
-अगस्त 2003 जिनभाषित
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