Book Title: Jinabhashita 2003 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 27
________________ सांगानेर का सच निर्मल कासलीवाल, जयपुर पिछले कई माह से श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर | काफी काम हुआ है पर यह नहीं लगता कि प्राचीनता का कोई संघीजी के बारे में अनेक पत्र-पत्रिकाओं में निकले लेखों के विनाश यहाँ हुआ हो'। कारण समाज भ्रमित हुई। वास्तव में सच क्या है ? उसे प्रकाशित उक्त हस्तलिखित टिप्पणी क्रमांक 2 पर संलग्न है। इसी तरह श्रीमती भावना देवराज चिखलिया, केन्द्रिय नहीं किया गया। ऐसे कुछ व्यक्ति हैं जो समाज के विकास में बाधक बन गये और समाज को बांटने पर तुल गये। संघीजी मंदिर राज्यमंत्री, संस्कृति एवं पर्यटन विभाग ने भी जीर्णोद्धार के कार्य के जीर्णोद्धार और संवर्द्धन को पुरातत्व से छेड़छाड़ करना बता रहे को देखकर कहा कि - 'पुरातत्व को देखकर / ध्यान में रखकर हैं, जो असत्य है। पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग राजस्थान, जयपुर ही जीर्णोद्धार कार्य किया जा रहा है, इन निर्माण कार्यों से पुरातत्व के निदेशक ने कमेटी द्वारा जीर्णोद्धार की सहमति मांगे जाने पर की हानि नहीं हुई है। प्राचीन शिखर यथास्थिति में है'। उक्त हस्तलिखित टिप्पणी क्रमांक 3 पर संलग्न है। पत्र क्रमांक 882 दिनांक 24 जनवरी 2001 को लिखित पत्र में इस सन्दर्भ में विरोध के स्वर को पुरातत्व की रिपोर्ट स्पष्ट सहमति जीर्णोद्धार की दी। देखना चाहिये रिपोर्ट में मंदिर के जीर्णोद्धार की प्रशंसा की गई है। सहमति पत्र क्रमांक 882/24.1.20011 पर संलग्न है कमेटी ने अपने समयानुकूल जब कार्य प्रारम्भ किया तो ऐसे कुछ बिन्दु है जिससे समाज सत्य क्या है ? असत्य क्या है ? कुछ प्रबुद्ध लोगों ने पत्र - पत्रिकाओं में पुरातत्व का विनाश हो परख सकती है और दुर्विचार फैलाने वाले विरोध स्वर की असत्यता रहा है ऐसा बताकर कार्य को रूकवाना चाहा। यह जो मंदिर समझ सकती है। सांगानेर वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध है जिसमें विराजमान श्री १. पुरातत्व विभाग की जांच रिपोर्ट जो की जिलाधीश आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा चतुर्थकालीन सातिशय चमत्कारी महोदय को भेजी गई थी जिसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि यह मंदिर है, आज तक कई राजाओं ने इसके विध्वंश की सोची पर वे अपने | पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक नहीं है। शस्त्र डालकर बाबा से क्षमायाचना कर मंदिर का संरक्षण किया अतः यह मंदिर दिगम्बर जैन समाज का निजी मंदिर है इसके और संवर्द्धन भी किया। जब आज पुनः जीर्णोद्धार की बात चली विकास कार्यों में सरकार दखल करे यह विधि सम्मत नहीं है। उक्त जांच रिपोर्ट क्रमांक 4 पर संलग्न है। तो उसका विरोध क्यों ? क्या वास्तव में जीर्णोद्धार करना पुरातत्व 2. विरोध किस बात का, जीर्णोद्धार का या पुरातत्व का। से छेड़छाड़ करना है? इसका उत्तर आगे दिया जायेगा अभी तो विरोध करने वालों को सोचना चाहिये कि उनकी इस नासमझाी मंदिर की भव्यता और अतिशयता की बात चल रही है। यहाँ की से समाज बदनाम हुई है। प्रतिमाओं के दर्शन करने मात्र से ही आत्म सन्तुष्टि मिलती है, | 3. पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के दखल की यहाँ जरा चतुर्थकालीन प्रतिमाओं का दर्शन करने से ही हमारे अनेक संताप | भी गुंजाईश नहीं है फिर भी पुरातत्व विभाग के तकनीकी मिट रहे हैं और लगता है कि आज साक्षात जिनेन्द्रदेव के दर्शन अधिकारियों ने यहाँ के जीर्णोद्धार कार्य का अवलोकन कर अपने किये हैं। इस सातिशय मंदिर के दर्शन चारित्र चक्रवर्ती आचार्य पत्र क्रमांक पु.सं. / तक / 2000/1235 दिनांक 31.1.2001 के शान्तिसागर जी महाराज, आचार्य देशभूषणजी महाराज, आचार्य द्वारा जीर्णोद्धार कार्य को उचित ठहराया। वीरसागरजी महाराज, आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज आदि उक्त जांच रिपोर्ट क्रमांक 5 पर संलग्न है। अनेक संतों ने, विद्वानों ने, वैज्ञानिकों ने किये और गुण गाये हैं। 4. जीर्णोद्धार की आवश्यकता क्यों हुई - चूंकि मंदिर श्री मिलापचन्दजी जैन 'लोकायुक्त' राजस्थान सरकार | काफी प्राचीन है, जिसकी घुमटियाँ चूने आदि से बनी हुई हैं। आपने भी सांगानेर संघीजी मंदिर के दर्शन कर कहा कि 'मूलनायक | बरसात के दिनों में इन जीर्णशीर्ण घुमटियों से रिस-रिस कर पानी भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा के दर्शन कर मुझे बड़ी शांति मिली, | प्रतिमाओं के ऊपर गिरने लगा और दिवारों पर सीलन आ गई. मंदिर की प्राचीनता भी हृदय को प्रभावित करने वाली है। मंदिर में | आदि अनेक कारणों से मंदिर के जीर्णोद्धार की अतिआवश्यकता -अगस्त 2003 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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