Book Title: Jinabhashita 2003 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 21
________________ ही करें अर्थात् स्वयं तिरछे ना बैठे। ईशान दिशा की ओर मुंह | नया निर्माण किया जाएगा तो उसका फल विपरीत मिलेगा, अरिष्ट करके अध्ययन आदि कार्य करें। होगा, असमय आयु का नाश होगा, पुत्र क्षय, कुल क्षय और प्रश्न - वसतिका की छत दक्षिण और पश्चिम की ओर | मनसंताप होगा। लोभ के वशीभूत होकर मंदिरों के बाह्य भागों, ढलान पर है तो क्या करें? धर्मशालाओं के आगे पीछे (सुविधानुसार) और मकानों के कमरों उत्तर - ढ़लान दक्षिण में हो तो पश्चिम में बैठे, यदि ढ़लान | की दीवारें तोड़कर दुकानें बनाई जा रही हैं। किरायेदार रखने के पश्चिम में हो तो दक्षिण में बैंठे। लोभ से या भाईयों के आपसी वैमनस्य से मकान आदि के बीच प्रश्न - वसतिका में साधक किस क्रम में बैठे ? | यद्वा-तद्वा इच्छानुसार कहीं भी दीवार खड़ी करके विभाजन उत्तर - यदि नैऋत्य से दक्षिण दिशा में कमरे, आग्नेय | किये जा रहे हैं। प्राचीन मन्दिरों के स्तंभ तोड़कर उसकी जगह कोण तक बने हों तो बड़े साधक से क्रमश: छोटे साधक बैठे, | लोहे की गार्डर डालकर अपने को धन्य माना जा रहा है। लोहा ठीक इसी तरह नैऋत्य से पश्चिम होते हुये वायव्य की ओर के | और सीमेन्ट की अनुकम्पा से नवीन मंदिर (गुम्बज युक्त) गोदाम कमरों में उपरोक्त क्रम ही जानें। सदृश बनाए जा रहे हैं। विधान के विपरीत कार्य करने के फलस्वरूप प्रश्न - सल्लेखना में स्थित क्षपक को वसतिका में किस | ही चारों ओर मार-काट वैमनस्य, दुर्घटनाएँ और आग लगाकर दिशा में रहना चाहिये, किस दिशा में मुंह करके बैठना चाहिये अथवा गोलियाँ खाकर आत्म हत्याएं हो रहीं हैं। जहाँ सुख-चैन एवं किस दिशा में सिर करके लेटना चाहिए? की बंशी बजनी चाहिए थी वहाँ परिवार अपनी पुत्रवधुओं को उत्तर - अ. सल्लेखना में स्थित क्षपक को वसतिका में | आग लगाकर उनकी हत्याएँ कर रहे हैं। ठीक पूर्व दिशा की तरफ वाले कमरे में रहना चाहिए। ऐसा संभव वत्थुविजा, पृष्ठ चार-पांच नहीं हो तो उत्तर एवं वायव्य के बीच में यदि कोई कमरा हो तो | कुछ बातें..... जिनका ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए वहाँ भी रहा जा सकता है। 1. भवन अथवा कमरे के प्रवेश द्वार के ठीक सामने न बैठे, न ब."पाची णाभि मुहो वा उदीचि हुत्तो व तत्थ सो ढिच्चा।" सोवें। 2031 भगवती आराधना 2. लोहे की गार्डर या आर.सी.सी. बीम, टांड के नीचे न कभी अर्थ- पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके क्षपक संस्तर पर बैठे, न सोवें। बैठता है। 3. आप यदि मंदिर परिसर में रुके हैं तो जिन प्रतिमा की पीठ स. "उत्तर सिर मधव पुव्वसिर" जिधर पड़ती हो ऐसे कमरे में कदापि न रुकें। 2030 भगवती आराधना |4. गैर पिच्छिका धारी (जिनकी भूमिका है) ऐसे साधक जो अर्थ - क्षपक का सिर पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर विद्युत के यंत्रों का प्रयोग करते हैं वो यंत्र (बल्ब, ट्यूब, रहे। पंखा आदि) उनके ठीक ऊपर नहीं होना चाहिए। प्रश्न- वसतिका से निषीधिका किस दिशा में होनी चाहिये? ऐसा परिसर जहाँ तलघर हो अगर वहाँ रुकते हैं तो तलघर उत्तर- जा अवरदक्खिणाए व दक्खिणाए व अहव अवराय। सम्पूर्ण परिसर के पूर्व-उत्तर (ईशान) दिशा में होना चाहिए। वसधीदो विरज्जड़ णिसीधिया सा पसस्थति। जाप्य, ध्यान अथवा पूजन जिनप्रतिमा के सम्मुख करने से 1964 भगवती आराधना | अर्थ - निषीधिका क्षपक के स्थान से पश्चिम-दक्षिण दिशाओं का दोष नहीं होता है, लेकिन वसतिका/घर में पूर्व दिशा (नैऋत्य) में या दक्षिण दिशा में या पश्चिम दिशा में हो तो अथवा उत्तर में ही करना चाहिये। उत्तम होती है। 7. गुरु जो वर्तमान में मौजूद हैं उनकी तस्वीर ईशान में किन्तु प्रश्न - स्नान करते समय मुंह किस दिशा की ओर होना जो समाधिस्थ अथवा निर्वाण को प्राप्त हो चुके हैं उनकी चाहिये? तस्वीर नैऋत्य या दक्षिण में लगाएँ। उत्तर - स्नान करते समय मुंह पूर्व दिशा की ओर सर्वश्रेष्ठ | 8. झूठे बर्तन मकान परिसर से बाहर और बाउण्ड्री वाल के माना जाता है। भीतर अथवा रसोई के बाहर ही रखना व साफ करना चाहिए। पद्मपुराण, पर्व 80 श्लोक 73 | दिशाएँ कैसे ज्ञात करें: प्रश्न - आर.सी.सी. के मंदिर निर्माण, मन्दिरों के जीर्णोद्धार उत्तर अथवा सामाजिक सम्पत्ति में परिवर्तन हेतु आपकी प्रेरणा एवं सान्निध्य, यदि किसी वास्तु विशेषज्ञ के निर्देश में नहीं हो तो क्या वायव्य ईशान हानि हो सकती है? पश्चिम उत्तर- शास्त्र प्रमाण के बिना यदि देवालय, मंडप, नैऋत्य आग्नेय धर्मशालाओं, गृह, दुकान और तलभाग आदि का विभाजन एवं दक्षिण -अगस्त 2003 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -पूर्व

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