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"चिरं सपस्यतो यस्य जटा मूर्ध्नि बमुस्तरम। से मैंने अपनी शंका भी व्यक्त की कि "बड़े बाबा" की मूर्ति की ध्यानाग्नि दुग्ध कन्ध निर्मद धूम शिखर इव" जगह ही पुराने मंदिर के स्थान पर, नया मंदिर क्यों नहीं बनाया जा
(आदि पुराणपर्व। श्लोक १) | रहा है? मूर्ति स्थानांतरण करते समय यदि पहले आई दरार, बढ़ चूंकि बड़े बाबा की मूर्ति में तीर्थंकर की पहचान का कोई | गई और अभूतपूर्व बड़े बाबा की मूर्ति को कोई नुकसान पहँचे तो चिन्ह नहीं है इसलिये सिंहासन पर बने शेरों, शिखर पर उत्कीर्ण
क्या होगा? इंजीनियर एवं समाज के लोगों ने बताया कि सिंह और महावीर स्वामी के बिहार स्थित जन्म-स्थल कुण्डपुर भूगर्भशास्त्रियों एवं संबंधितों से परामर्श कर लिया गया है, कोई (कण्ड ग्राम) से नाम में साम्य होने आदि के कारण, वर्षों तक | क्षति नहीं होगी। इन्हें महावीर स्वामी ही माना जाता रहा। परंतु पुरातत्त्वविदों के
कारण कि "बड़े बाबा" की मूर्ति यहाँ ही स्थाई रूप से सूक्ष्म परीक्षण उपरान्त महावीर स्वामी के शासन देवों गजारूढ़ | निर्मित नहीं की गई थी वरन प्राचीन काल में भी अन्य स्थान से मातंग यक्ष व सिद्धायिका देवी नहीं पाये जाने एवं अन्य सभी ऊपर
लाकर यहाँ अवस्थित की गई थी। इससे अब निकट के बड़े वर्णित लक्षण आदिनाथ के होने के कारण, अवधारणा स्पष्ट हो
जिनालय में भी स्थानांतरित की जा सकती है। क्षति का प्रश्न ही सकी। यों भी परम्परा से बड़े बाबा प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को
नहीं उठता। बुन्देलखण्ड की संस्कृति पर वर्षों से काम करते हुये कहा जाता रहा है। हांलाकि अब अधिकांश तीर्थों पर बड़ी मूर्ति
मुझे "बुन्देल केसरी" छत्रसाल के रचे निर्माण को नष्ट होते हुये को ही बड़े बाबा कहने का प्रचलन चल पड़ा है।
देखकर आत्मीय पीड़ा हो रही थी पर जब ज्ञात हुआ कि भूकंप से तीर्थ वन्दन
बचाने और भविष्य की सुरक्षा के लिये यह आवश्यक है। विशाल भूभाग के अधिपत्य वाले इस जैन तीर्थ की
गर्भ गृह को आगत की दृष्टि से व्यापक विस्तारित करने वंदना यहाँ स्थित सरोवर में स्नान करके ही प्रारंभ करने की
के लिये ही आधुनिकतम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। बड़े परम्परा है परंतु अब सरोवर को स्वच्छ रखने की दृष्टि से यह
बाबा को क्षति भी नहीं होगी और 108 मुनिवर आचार्य श्री प्रतिबंधित है। अपने ठहरने के स्थानों यथा धर्मशाला या विश्राम
विद्यासागर जी का आशीर्वाद प्राप्त हो गया है। तब वह पीड़ा उस गृहों से ही नहा-धोकर पहाड़ की वंदना करने भक्तगण निकलते
माँ के प्रसव पीड़ा जैसी प्रतीत हुई जिससे एक होनहार महान् जीव हैं। यहाँ पर्वत की चढ़ाई कठिन न होकर बहुत आसान और
का नवागमन होता है। हम आप क्या अपने पूर्वजों के बनाये कच्चे उत्साह वर्धक है। सर्वप्रथम सबसे ऊंचे छहयरिया मंदिर के दर्शन
मिट्टी के घर मिटाकर बंगले या बहुमंजिला भवन नहीं बनाते हैं? से ही वंदना प्रारंभ होती है और “ससुर-दामाद" नामक मंदिर
तो फिर भगवान के लिये हमारे पूर्वाग्रह क्यों ? हमारे पूर्वजों के आदि के दर्शन पंक्तिबद्ध करते हुये पहाड़ी और तलहटी के प्राकृतिक
बनाये कच्चे घर, हमारी सांस्कृतिक धरोहर नहीं थे? उनमें रंगोली. पर्यावरण का प्रांजल परिवेश देखते ही बनता है। वर्धमान सरोवर'
नक्काशी, टिकाउपन और कलाकृतियाँ नहीं थी ? जब उसकी में मंदिरों के विशाल बिम्ब तैरते से प्रतीत होते हैं । सूर्य की सुनहरी
जगह नये निर्माणों ने ले ली है तो हमारे आराध्य पीछे क्यों रहें? आभा से यह दृश्य और अधिक लुभावना हो, मन मोहता है।
फिर बड़े बाबा तो बड़े बाबा हैं। अनेक अतिशय उन्होंने दिखाये सुबह की मदमस्त हवा, वंदना (दर्शनयात्रा) को और अधिक
हैं, प्रासंगिक और आधुनिक परिवर्तन के लिये यह चमत्कार भी आनंदित कर स्फूर्तमय बनाती है। "जयकारा" बोलते हुए दर्शनार्थी
| दिखायेंगे। जैसे ही बड़े बाबा के सामने पहुँचता है तो हतप्रभ हो उठता है
कहते हैं सदियों पहले औरंगजेब ने जब बुतों के विध्वंस ऐसी मूरत कभी न देखी जैसी आज लखी है,
की हवश में "बड़े बाबा" को नष्ट करने के लिये सेना भेजी थी सचमुच बड़े-बड़े बाबा हैं सूरत बड़ी भली है।
तब "जब जब होय धरम की हानि" के अनुरूप "बड़े बाबा" "बड़े बाबा" के दोनों और समान ऊँचाई की तेइसवें
की सिद्धता ने ही रक्षा की और आक्रमणकारियों द्वारा अंगूठे पर तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमायें कायोत्सर्ग मुद्रा में अवस्थित हैं।
प्रथम चोट करते ही दूध की धारा वहाँ वह निकली थी। जब भित्तियों पर अन्य प्राचीन प्रतिमायें भी जड़ी हैं। आदिनाथ स्वामी
शहंशाह स्वयं भंजन करने आये और मधुमक्खियों का जो प्राकृतिक की मूर्ति के ऊपर विद्याधरों की श्रीमाल लिये उड़ती हुई मुद्रा में,
आक्रमण मुगलों पर हुआ तो आतताइयों को प्राणों की भीख हर्षोल्लास व्यक्त करते हुये चमरेन्द्र आदि भी अंकित हैं। लाल
मांगकर ही भागना पड़ा था। यदि इस अतिशय पर हमारी आस्था बलुआ पत्थर से निर्मित दिव्य मूर्ति का सिंहासन दो हिस्सों को
है तो "बड़े बाबा" के लिये हमारी चिन्ता करना, नादानी होगी। जोड़कर बनाया गया सा लगता है। कहते हैं कभी भूकम्प के आने
तीर्थ की तलहटी के मंदिर भी प्राचीन, विशाल, भव्य और से ही कदाचित "बड़े बाबा" का सिंहासन एक ओर थोड़ा दब
वंदनीय हैं। जल मंदिर में एक चौमुखी (सर्वतोभद्र) प्रतिमा गया है । मूर्ति में ऊपर की ओर एक दरार आई दिखती है। विगत
महत्वपूर्ण है जो उल्लेखनीय है ।"बड़े बाबा" को हमारे अनन्तानन्त वर्ष मुझे जब अपने ज्येष्ठ पुत्र मनीष के संबंध करने के लिये पटेरा
नमन और साथ ही सद्प्रयासों के लिये अशेष शुभ मंगलकामनाएँ। जाने पर वर्षों बाद कुण्डलपुर दर्शन का सौभाग्य मिला तो यह जानकर आश्चर्य हुआ कि पुराने मंदिरों को तोड़कर एकदम नया
मडबैया सदन, 75, चित्रगुप्त नगर,
कोटरा, भोपाल-3 और विशाल जिनालय बनाया जा रहा है। वहाँ कार्यरत इंजीनियर
-अगस्त 2003 जिनभाषित 17
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