Book Title: Jina Sutra Part 2 Author(s): Osho Rajnish Publisher: Rebel Publishing House Puna View full book textPage 9
________________ अनुक्रम 101 121 139 1. सत्य के द्वार की कुंजी : सम्यक श्रवण 2. यात्रा का प्रारंभ अपने ही घर से 3. ज्ञान है परमयोग 4. किनारा भीतर है 5. जीवन ही है गुरु 6. करना है संसार, होना है धर्म 7. ध्यान का दीप जला लो 8. प्रेम है द्वार | 9. प्रेम का आखिरी विस्तार : अहिंसा 10. दुख की स्वीकृति ः महासुख की नींव 11. समता ही सामायिक 12. ज्ञान ही क्रांति 13. गुरु है मन का मीत 14. जीवन तैयारी है, मृत्यु परीक्षा है 15. त्वरा से जीना ध्यान है 16. गुरु है द्वार 159 179 199 219 239 259 279 303 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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