Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 10
________________ 321 343 365 389 411 433 455 17. ध्यान है आत्मरमण 18. मुक्ति द्वंद्वातीत है 19. ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत 20. गोशालकः एक अस्वीकृत तीर्थंकर | 21. छह पथिक और छह लेश्याएं 22. पिया का गांव 23. षट पर्दो की ओट में 24. आज लहरों में निमंत्रण 25. चौदह गुणस्थान 26. प्रेम के कोई गुणस्थान नहीं 27. पंडितमरण सुमरण है 28. रसमयता और एकाग्रता 29. त्रिगुप्ति और मुक्ति 30. एक दीप से कोटि दीप हो 31. याद घर बुलाने लगी 479 503 523 543 565 587 609 629 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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