Book Title: Janak Nandini Sita
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 13
________________ तदन्तर श्रीरामचंद्र, लक्ष्मण, सीता एक तपस्वी के आश्रम में|| चित्रकूट पर्वत के पास कुटिया बनाकर रहने लगे। नाना गये- उन तपस्वियों ने नाना प्रकार के मधुर फल सुगन्धित पुष्प | प्रकार की कथा करते हास्य विनोद करते- जैसे नन्दन व मीठा जल आदर सहित भेण्ट किये। रात्रि विश्राम कर प्रभात || वन में देव भ्रमण करते हैं वैसे ही अतिरमणीक लीला होते ही उठकर आगे चलने लगे- तब अनेक तपस्वी उनके पूर्वक वन विहार करते रहे। साथ चलने लगे। हम आगे जो निर्जन वन बता रहे हो, वहीं जावेंगे, आप लोग वापस लौट जावो। इसके बाद चारमास में मालव देश में आये, जहां ये इतना इस उज्जयनी नगरी के राजा सिंहोदरा हैं। उसका सेवक कोई बस्ती नहीं दिखाई दी तो एक वट वृक्ष की सुन्दर प्रदेश वजकर्ण जिसने मुनिराज उपदेश से प्रभावित हो प्रण कर छाया मे विश्राम करने लगे तभी एक वृद्ध पथिक निर्जन कैसे लिया कि मैं देवगुरू शास्त्र को छोड़कर किसी को नमस्कार उधर से निकला। श्रीराम ने उससे पूछा- हो रहा है? नहीं करूंगा। इसका पता लगने पर सिंहोदरा ने उसके नगर 40 व व प्रदेश को उजाड दिया है। SECate Kav GUL Rects 442-2 जैन चित्रकथा

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