Book Title: Janak Nandini Sita
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 23
________________ इस प्रकार जब सीता ने तिरस्कार किया तब रावन ने क्रोध कर माया प्रकट की- मद झरती माया मई हाथियों की घटा आई। बहुत से अनि के गुब्बारे बरसने लगे। लबलबाद करते जीभ के सर्प आये। महाकूर वानर उछलकूद करने लगे। अग्नि की ज्वाला समान जीम लपलपाते अजगर आये। प्रभात हुआ- विभीषण आदि रावण के भाई खरदूषण के शोक पर रावण के पास आये। सो नीचा मुख किये। आंसू डारते भूमिपर बैठे। उस समय पट के अंतर शोक की भरी सीता के रूदन के शब्द विभीषण ने सुने वह कहने लगा कौन स्त्री रूदन कर रही है? अपने स्वामी से बिछुड़ी है। याका शोकसंयुक्त शब्द दुःख को प्रकट दिखा रहे हैं। जैन चित्रकथा WH फिर अंधकार समान काले ऊंचे व्यंतर हुंकार करते आये। रावण ने उपसर्ग किये तथापि सीता नहीं डरी। ये विभीषण के शब्द सुन सीता अधिक रोने लगी, सज्जन को देख शोक बढता ही है। मैं राजा जनक की पुत्री, भामण्डल की बहिन राम की राणी, दशरथ की पुत्रवधु, लक्ष्मण मेरा देवर, सो खरदूषण से लड़ने गया। उसके पीछे मेरा स्वामी भाई की मदद के लिए गया, वन में अकेली देख या दुष्टचित्त ने हरण किया। मेरा पति मेरे बिना प्राण तजेगा इसलिए हे भाई मुझे मेरे पति के पास शीघ्र भेज दो। 21

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