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परन्तु सीता के कर्मदोष से मूढ लोग ये अफवाह जब श्रीराम के पास पहुंची अपवाद उठाने लगे। तब श्रीराम ने भली भांति सोच विचार कर सेनापति को बुलाय और आदेश दिया
रावण ने सीता का हरण किया। श्रीराम जीत कर वापस ले आये। फिर से घर में रखी, राम महाज्ञानी बड़े कुलीन, चक्री, महावीर उनके घर में यह रीति तो और लोगों की क्या बात
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जैन चित्रकथा
शीघ्र ही सीता को ले जाओ, मार्ग में जिन मंदिर दर्शन करवाकर उनकी आशा पूर्णकर सिंहनाद की अटवी, जहां मनुष्य नाम नहीं वहां अकेली छोड़ आवो।
जो आज्ञा होगी वही होगा, कुछ वितर्क नहीं करूंगा।
| तब सीता रथ चढी भगवान को नमस्कार किया और रथ पवन वेग से बढ चला। चलते समय अपशकुन हुए, जिन भक्ति में अनुरागिणी निश्चल चित चली गयी अपशकुन न गिने पहाड़ों के शिखर, कन्दरा, वन उपवन, उलंघकर शीघ्र ही रथ दूर गया। भव्य रथ पर जा रही राम की राणी इन्द्राणी समान लग रही थी। नदी के पार जाकर सेनापति ने रथ रोक दिया और अवरुद्ध कण्ठ से अश्रुपूरित आंखों से करबद्ध निवेदन किया।
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उसने महाराणी जानकी के पास जाकर कहा हे माता! उठो रथ में चढो चेत्यालय दर्शन की वांछा है सो करो
हे मातः ! दुर्जन के वचन से राम अपकीर्ति के भय से जो न तजाजाय तुम्हारा स्नेह उसे तज कर चैत्यालयों के दर्शन की उपजी अभिलाषा पूर्ण कराकर भयानक वन में तजी है। हे देवी! जैसे यति राग परणति को तजे वैसे ही राम ने तुमको तजी है। लक्ष्मण ने कहने की हद थी सो कही कुछ कमी नही रखी। अनेक न्याय के वचन कहें परन्तु राम ने हठ नही छोड़ी। अब तुमको धरम ही शरण है। इस संसार में धर्म ही जीव का सहाई है।
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