Book Title: Janak Nandini Sita
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 31
________________ इस प्रकार सीता विलाप कर रही थी। उस समय पुण्डरीकपुर का राजा | सारी बात सुनकर राजा वज्रजंघ अति उद्वेग को प्राप्त हुआ वज्रजंघ हाथी पकड़ने के लिए उधर से निकला। सीता के विलाप को सुन | सीता के पास आकर आदर पूर्वक कहने लगा। कर निकट आया और पूछा पुन: रूदन करने लगी, राजा ने धीरज | हे शुभमते! तुम जिनशासन में प्रवीण निसंदेह राम तुझे आदर से हे बहिन ! वह वज्रसमान कठोर बंधाया तब आंसू ढारती गदगद होकर बोली| हो। शोक कर रूदन मत करो। यह बुलायेंगे, इस तरह धर्मात्मा महाअसमझ है, जो तुझे ऐसे मैं राजा जनक की पत्री. भामण्डल की बहिन आर्तध्यान दु:ख का कारण है। वन ने सीता के शांतता उपजाई। बन में त्याग गया। उसका हृदय राजा दशरथ की पुत्रवधु, सीता मेरा में हाथी के निमित्त मेरा आना हुआ। मानो भाई भामण्डल ही मिला है। पुण्य लापणा नाम, राम की राणी हैं। लोकापवाद मैं वज्रजंघ पुण्डरीकपुर का अधिपति अपनी अवस्था का कारण बताओ। के भय से मुझे यहां त्याग गये। तू मेरा अति उत्कृष्ट भाई है। राजा शुभ आचरण का धारक हूं - महायशस्वी, शूरवीर, भयमत करो, गर्म का खेद मत करो। तू मेरे धर्म के विधान कर बड़ी बहिन है। पुण्डरीकपुर चलो। बुद्धिमान शान्तचित्त साधर्मि पर वात्सल्य करने ouTRA वाला उत्तम जीव है। तदन्तर वजजंघ ने पालकी मंगवाई, उसपर सीता आरूढ हुई- युद्ध कला में निपुण वज्रजंघ के साथ दिग्विजय कर आयेपुण्डरीकपुर पहुंचे- वहां सबका सम्मान पाकर हर्षित हुई। एक बार नारद जी द्वारा श्रीराम, लक्ष्मण का परिचय पाकर तदन्तर नव महीना पूर्ण हुए श्रावण सुदी पूर्णिमा के दिन पूनम के सीता का अकारण वनवास जानकर क्रोधित होकर अयोध्या पर चन्द्रमा समान पुत्र युगल को जन्म दिया। राजा वज्रजंघ ने अति | चढाई करने चले। सामने श्रीराम लक्ष्मण ने भी युद्ध का डंका उत्सव किया। एक का नाम अनंगलवण, दूजे का मदनाकुश। ये यथार्थ | बजा दिया भामण्डल को पता चला तो वह विमान में सीता को | नाम रखे। क्रीड़ा करते सुन्दर बालकों को देख कर सीता समस्त भी ले आया। फिर वापस पुण्डरीपुरी भेज दिया। दुःख भूल गई। वे दोनो वीर, महाधीर, ज्ञानवान, लक्ष्मीवान, पृथ्वी के सूर्य पुण्डरीकपुरी में देवों की तरह विचर रहे हैं। 1जैन चित्रकथा

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