Book Title: Janak Nandini Sita
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ अपना वल्लभ विष का भोजन करे और उनके जाने के बाद हे देवी ! यह सागरांत पृथ्वी श्रीरामचन्द्र जी की है, उसे दूर नही करो, जो अपना भला बुरा हनुमान ने सीता को इसलिए यहां का अन्न उन्हीं का है, वैरियों का नहीं नही जाने, उसका जीना पशु समान है। नमस्कार कर कहा- है। श्रीराम का कुशल समाचार भी मिल गया। । पति पर स्त्री रत हुआ और तुम दूतीपना करो। तुम अर्धचक्री की महीषी कहिए। पटराणी हो भैंस समान जानता हूँ। VOC इस तरह हनुमान के कहने और अपनी प्रतिज्ञा पति के समाचार सुनू-तब भोजन करूं' सो समाचार आये ही-तब सीता सब आचार में विलक्षण, महासाहसी, शीलवंती, दयावंती, देशकाल की जानने वाली, आहार लेना अंगीकार किया। तब हनुमान ने ईरा नामकी स्त्री तब मंदोदरी आदि राणी अपमान | कुल पालिका को कहकर सीता के लिए भोजन की व्यवस्था करवायी। सीता ने चूडामणी | होने पर रावण के भवन गई। उतार कर हनुमान के दी और हनुमान सीता को धीरज बंधाकर वापस रवान हो गये। जब रावण को पता लगा कि वन में कोई विद्याधर आया है। क्रोधित होकर महानिर्दयी किंकर हनुमान को मारने के लिए भेजे। हनुमान जी ने सबको मार-मार कर भगा दिया। बाग को तहस नहस कर दिया, तब इन्द्रजीत आया भयंकर युद्ध हुआ। उसने नागफास से पकड़कर हनुमान को रावण के दरबार में हाजिर किया। बंधन तोड़कर हनुमान वापस श्रीराम के पास आये- सारा समाचार बताया-चूड़ामणि श्रीराम को हे हनुमान! सत्य कहो हे नाथ! आपका ध्यान कर रही हैं, आप के विरह में निरन्तर रूदन कर मेरी स्त्री जीवित है? रही हैं। अत्यंत दु:खी हैं। अब आपको जो करना हो सो करो। AAVAN तब श्रीराम लक्ष्मण ने सुग्रीव की वानर सेना, भामण्डल की विद्याधर सेना ने लंका का घेरा डाला... 24 जनक नन्दनी सीता

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36