Book Title: Janak Nandini Sita
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 18
________________ अब तो वर्षा ऋतु आगई, यह अत्यन्त भयंकर है। समुद्र उफनते हैं, मेघ घटाएँ घहराती हैं बिजली चमकती है निरन्तर बादल बरस रहे हैं। नदी वेग से बह रही है। धरती कीचड़ से भरी हुई है। WALD auu W 16 शरद ऋतु का आगमन हुआ एक दिन बड़े भाई की आज्ञा मांग सिंह समान पराक्रमी वन देखने अकेला निकला। लक्ष्मण को बहुत देर लगी जान कर श्रीराम सीता से कहते हैं। लक्ष्मण कहां गया? हे नाथ! वो लक्ष्मण आगया, पूरे अंग में केसर लगी है भद्र जटायु तुम उड़कर देखो है, सुन्दर मालाऐं पहन रखी हैं, एक अद्भुत खड़ग कि लक्ष्मण आ रहा है क्या? लिए आ रहा है। आप इधर देखिए। 1 Win utp very? Muzamm ura इस तरह सुख पूर्वक वर्षाकाल पूरा किया। तब श्रीराम ने आश्चर्य पूर्वक हर्षित होकर लक्ष्मण को छाती से लगा लिया- सकल वृतान्त पूछा तब लक्ष्मण ने सारी बात बतायी। भया सहित सुख से विराजे उधर चन्द्रनखा बिलबिलाती क्रोधित हो अपने पुत्र को मारने वाले को ढूंढती आ धमकी दो महारूपवान श्रीराम, लक्ष्मण को देखकर उसका प्रबल क्रोध तत्काल जाता रहा और राग उपजा इन दोनों में मुझे NOW पसंद करे उसे ही सेवन करूं में। यह विचार, कामातुर होकर, आसक्ति वश पुन्नागवृक्ष के नीचे बैठी रूदन करने लगी। अत्यन्त दीनतापूर्ण बातें करने लगी। उसे देख दयावश श्रीसीता उसके निकट गयी, धीरज बंधाकर श्रीराम के पास लायी तब उससे पूछने लगे। हे पुरुषोत्तम! मेरी माता बचपन तुम कौन हो? इस में मर गयी। उसके शोक में पिता भी भयानक वन में अकेली परलोक गामी हो गया। अनाथ होकर दण्डक क्यों घूम रही हो? वन में आई बहुत दिन से इस वन में भटक रही हूँ। अब मेरे प्राण ना छूटे उससे पहले कृपा कर मुझे पसन्द कर लो। .30 ww जनक नन्दनी सीता

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