Book Title: Janak Nandini Sita
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 16
________________ जिसे पूर्वभव स्मरण हो आया पेड़ से नीचे आकर मुनिराजों का चरणोंदक पीने लगा सीता आश्चर्य चकित उसे देखने लगी। महाविरूप पक्षी मुनिराज के चरणों में पहुंचते ही स्वर्ण व रत्न समान छविधारी बन गया और महान शान्ति को प्राप्त हुआ। ONTE 14 श्रीराम के पूछने पर मुनिराज ने दण्डक वन व गिद्ध की पूर्व कथा बतायी पक्षी को उपदेश दिया। हे भव्य ! तुम अब गम मत करो। जिस समय जैसी होनी होती है सो हो कर रहती है। होनहार को कोई नही टाल सकता। देख कहाँ यह वन और कहां सीता सहित श्रीराम का आगमन और कहां हमारा वनचर्या का अवग्रह जो वन में श्रावक के आहार मिलेगा तो लेवेंगे और कहां तुम्हारा हमको देख प्रति बोध होना? तब पक्षी ने बारम्बार मुनि के निकट नमस्कार राजा जनक की पुत्री ने विश्वास दिलाया राम लक्ष्मण के समीप ये पक्षी श्रावक के इसे ही में इसकी रक्षा व पालना करूंगी। कर श्रावक के व्रत धारण किये। तब सीता ने जैसे गरूड़ की माता गरूड़ को पालती है व्रत धारण कर महास्वाद संयुक्त भोजन उसे उत्तम श्रावक जान प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। इस गहन वन में अनेक क्रूर जीव है। इस सम्यग्दृष्टि पक्षी की तुम्हें सदा काल रक्षा करनी है। भवदुःख से भयभीत पक्षी को मुनिराज ने कहाहे भद्रे ! तुम निर्भय होकर श्रावक के व्रत लेवो, शान्त भाव धारण करो, किसी प्राणी को पीड़ा मत दो, अहिंसा व्रत धारो, मृषावाणी तज दो, सत्यव्रत धारो, पर वस्तु का ग्रहण तज दो, ब्रह्मचर्य का पालन करो, संतोष धारो, रात्रि भोजन व अभक्ष आहार का त्याग करो। त्रिकाल संध्या में जिनेन्द्र का ध्यान करो। GRAF anan www HAALA www करने लगा। स्वर्ण समान पंखोंयुक्त पक्षी का नाम सीता ने जटायु रखा। सदा उसकी रक्षा करते थे। जनक की पुत्री सीता ताल बजाते और राम लक्ष्मण दोऊ भाई ताल के अनुसार तान लावे तब यह जटायु पक्षी 5. रविसमान कान्तिमय हर्षित होकर ताल के अनुसार नृत्य करें। श्रीराम लक्ष्मण पक्षी को जिन धर्मीजान अत्यन्त धर्मानुराग पुरित हुए की स्तुति कर नमस्कार किया दोनो मुनि विहार कर गये। जनक नन्दनी सीता

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