Book Title: Janak Nandini Sita
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ अथान्तर पात्रदान के प्रभाव से सीता राम लक्ष्मण इस लोक में रत्न हेमादि सम्पदा युक्त हए। एक भव्य सुवर्णमयी रत्न जड़ित, ताके मनोहर स्तम्भ जिन पर मोतियों की मालाएँ लूम्ब रही हैं, सुन्दर झालरें, सुगन्धित चन्दन कपूर से बने जिसमें सेज, आसन वादित्र वस्त्र, सर्व सुगन्ध युक्त ऐसा एक विमान समान रथ बनाया। जिसके चार हाथी जुते हुए, उसमें राम, सीता, लक्ष्मण, जटायु सहित रमणीक वन में भ्रमण करते हैं। किसी का भय नहीं, कोई घात नहीं, कहीं एक दिन, कहीं पन्द्रह दिन, कहीं एक मास मनवांछित क्रीड़ा करे, यहां निवास करें, वहां निवास करें। महा निर्मल निभरनों को निरखते, स्वेच्छानुसार भ्रमण करते, ये धीर वीर सिंह समान निर्भय दंडक वन मे मध्य पहुंच गये। जहां से नदियां निकले। जिनका मोती के हार समान उज्जवल जल, अनेक वृक्ष शोभित है, स्वयमेव उपजे नाना प्रकार के धान्य, महारस के भरे सांठे, नाना प्रकार की बेलें, नाना प्रकार के फल फूल मानों दूसरा नन्दन वन ही है। शीतल मन्द सुगन्ध पवन ऐसा लगे वह वन राम, सीता के आने से हर्ष कर नृत्य कर रहा है। Ramay लामाशाणाणारा का ALAMISCE नदी के तट पर मनोहर स्थल देख हस्तिरथ उतर कर लक्ष्मण||जल क्रीड़ा से निवृत हो पास में लता मण्डल में बैठ कर मधुर फल नाना स्वाद के सुन्दर मीठे फल लाये। फिर राम, सीता सहित ||खाये- फिर नाना प्रकार की सुन्दर कथाएं सुनाने लगे- जटायु के जल क्राड़ा म मग्न हा गय। जसा जल क्राड़ा इन्द्र नागन्द्र मस्तक पर हाथ रख सीता व लक्ष्मण आनन्द से कथा श्रवण करने चक्रवर्ती करें तैसी राम लक्ष्मण ने की। मानो वह नदी समरूप| लगे। राम लक्ष्मण से कहने लगे। - हे भ्रात! यह नाना प्रकार के कामदेव को देख रति समान मनोहर रूप धारी हुई। सीता गान करने लगी गाने के अनुसार रामचन्द्र जी ताल देने लगे। वृक्ष स्वादु फल संयुक्त, नदी निर्मल जल भरी, ये दण्डक नामका गिरी अनेक रत्न से पूर्ण है, इसलिए इस गिरि के निकट नगर बसावें यहां निवास हर्ष का कारण है। हे भाई! तुम दोनों माताओं को लाने को जावो। वे अत्यन्त दुखी है, सो शीघ्र ही ले आओ। जो आपकी Funकामसकरार आज्ञा होगी वही होगा। जैन चित्रकथा

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36