Book Title: Janak Nandini Sita
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 20
________________ उसी समय रावण सीता को उठाने को आया सीता को रावण जनक सुता को पुष्पक विमान में धर अपने स्थान ले चला। उठाय पुष्पविमान पर धरा तभी जयायु पक्षी क्रोधित | सीता बुरी तरह विलाप करने लगी- सीता को रूदन करती देख रावण हो रावण पर टूट पड़ा। रावण ने महाक्रोध पूर्वक हाथ| जो यह निरन्तर रो रही है, विरह से व्याकुल है। की चपेट से मारा। जटायु मुर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा। अपने भरतार के गुण गा रही है, अन्य पुरुष के संयोग की अभिलाषा नहीं है। सो स्वी अवध्य है, इसलिए मैं मार नही सकुं। मेरा साधुओं के निकट व्रत लिया हुआ है, जो स्त्री मुझे नहीं चाहे उसका सेवन मैं नही कर सकता। मुझे व्रत दृढ रखना है। इसे कोई उपाय कर प्रसन्न करूं । DO 23 उधर श्रीराम ने बाण वर्षा करते हुए रणक्षेत्र में प्रवेश किया- तब लक्ष्मण | पास में घायल जटायु को देखकर उसे णमोकार मंत्र के बताने पर छलका पता चला खरदूषण को सेना सहित मारकर जब सुनाया। वह श्रावक व्रत धारी श्रीराम के सान्निध्य से राम लक्ष्मण वापस आये- सीता को नहीं देखकर राम विलाप करने लगे। मरकर देव हुआ। जनक नन्दनी सीता

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