________________
यथा समय स्वयंवर मंडप रचा गया सकल राजकुमारों को पत्र भिजवाये गये, अयोध्या नगरी को दूत भेजा। महाराज दशरथ सहित चारों भाई आये- सीता परम सुन्दरी सात सौ कन्याओं के बीच महल के ऊपर विराजमान है। एक विद्वान राज कर्मचारी मंडप में बिराजे राजकुमारों का ऊंचे स्वर में परिचय सुना रहा था। हे राजपुत्री ! यह कमल लोचन श्रीरामचंद्र राजा दशरथ के पुत्र हैं और यह इनका छोटा भाई लक्ष्मीवान लक्ष्मण है। महातेजस्वी हैं। www
एक-एक कर सभी राजकुमार धनुष के निकट गये। धनुष से चारों ओर अग्नि की ज्वाला बिजली के समान निकल रही थी। मायावी भयंकर सर्प फूंकार रहे थे। सब राजकुमार धनुष को देखकर कांपने लगे। कई एक तो कानों पर हाथ धर कर भागे। कई एक भयभीत से दूर ही खड़े रहे। आंखें चौंधिया रही थी
जैन चित्रकथा
तब श्रीराम धनुष चढाने के लिए आगे बढे महामाते हाथी की तरह मनोहर गति से चलते धनुष के निकट गये। सो धनुष राम के प्रभाव से ज्वाला रहित हो गया। तब श्रीरामचंद्र ने सहजता से धनुष उठाकर चढाया। खेंचते ही महाप्रचण्ड शब्द हुआ। धरती धूजने लगी। सीता ने वरमाला राम के गले में डाली। दूसरा धनुष सागरावर्त लक्ष्मण ने उठाकर चढाया त्याँही पुष्पवर्षा होने लगी। चारों तरफ जय-जयकार होने लगी।
त्रिलोक सुन्दरी श्रीसीता व श्रीराम विवाह हो गया व अयोध्या लौट आये
समस्त राजकुमारों का परिचय सुनाने के बाद कहा- ये समस्त महागुणवान राजकुमार यहां पधारे हैं। इनमें से जो वज्रावर्त धनुष की प्रत्यन्चा चढावे उसे ही तुम वरण करो
oo
pes Ro
उधर भामण्डल लज्जा और विषाद से भर गया। ईर्ष्यावश क्रोधित होकर विमान चढकर आकाश मार्ग से निकला। पृथ्वी पर जब उसने अपना पूर्वभव का स्थान विदग्धपुर देखा तो उसे जातिस्मरण हो आया हो आया- सोचा... मैं और सीता एक ही माता के उदर से पैदा हुए। अब मेरे अशुभ कर्म नष्ट हुए तब पता चला।
9
कु