Book Title: Jainpad Sangraha 02
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 17
________________ द्वितीयमाग । 43 || श्रीमुनि ||२|| तह मध्यान्हमाहिं निज ऊपर आयो उग्र प्रताप पतंग कैमाँ ज्ञान पचनयल प्रज्वलित, घ्यानानलसों उछल फुलिंग || श्री ||३|| चिन्न निराकुन्न अतुल उठत जहूँ, परमानंद पिग्रुपतरंग। भागचंद ऐसे श्रीगुरुपद, बंदन सिलन स्वपद उसंग ॥ श्रीमुनि ||४|| २१ राम गौरी | 1 आतम अनुभव अजय निज, आतम अनुभव आवै। और कछू न सुहावै जय निज० ॥ टेक ॥ रम नीरस हो जात नर्नाच्छिन, अन्य विषय नहिं भावै ॥ आम०॥ ॥ १ ॥ गोष्टी कथा कुतुहल विटे, पुलप्रीनि नसावें ॥ आतम० ||२|| राग दोष जुग चपल पक्षजुन मन पक्षी मर जाये || आतम ||३||ज्ञानानन्द सुधारम s, घट अंतर न समाये ॥आत० ॥ भागनंद एम अनुभवके हाथ जारि मिर नावे ॥ आनम० ॥ ४ ॥ २२ गग ईमन | महिमा है अगम जिनागमकी || जाहि सुनन जड़ भिन्न पिछानी. हम चिन्मरनि आतमकी महिमा० || || रागादिक दुम्बकारन जाने, त्याग शुद्धि नी भ्रमकी । ज्ञान ज्योति जागी घर अंतर, गनि वादी पुनि शमदमकी || महि० ॥ २ ॥ कर्म की भह निरजरा, कारण परंपरा क्रमकी | भागचन्द शिव

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