Book Title: Jainpad Sangraha 02
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 27
________________ दिनीयमाग। बसै चर, दिशिन,भरी मो दाई तीन चरमन भागचन्द अनुभवमंदिरको नमन न मंत मीर॥ । बरसत०॥४॥ ૨૨ नामदार। मंघघटामम श्रीजिनवानी ॥ टेक ॥ स्यान्पद वपन्ला चमकत जाम, परसतज्ञान मुपानी मेघवटा ॥१॥धरममत्य जाने पर याद.शिवानंदफलदानी ।। मेघघटा० ॥॥ मोहन वृत्त दया सब यान. मांशानल सुबुझानी ॥ मंवघटा० ॥ ॥ भागचन्द युवजन कंकीकुल, लग्नि हरच चिनजानी । मघवटा ॥४॥ मग मात्र प्रभू यांका लम्वि मनचिन हरपायीक । सुंदर चिनारतन अमोन्टक, रंकारुप जिनि पायो।। प्रभृ०॥१॥निमलरूप भयो अब मंग. भनिनदीजल, न्हायो । प्रभृ ॥२॥ भागचन्द अप मम करनलम अविचल शिवधन आयो । भृ०॥॥ नामदार। प्रभू म्हाकी सुधि, कम्ना करिनाल | टंक 1 मेरे इक अवलम्यन तुम ही. अयन विलम्य कर्गज ॥ प्रभू : अन्य कुदव नजे सब मैने, तिनं

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