Book Title: Jainpad Sangraha 02
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 29
________________ द्वितीयभाग ४७ स्याल | for काम ध्यानमुद्राभिगम, तुम ही जगनारावाजी ॥ टेक ॥ यद्यपि धीनरामय नयपि, ही शिवा वक जी ॥ विन काम॥ १ ॥ शमी देवी आप ही दुनिया, सो क्या लायक जी || चिन काम ॥२॥ दुर्जय मोह शत्रु नको. तुम बच शायकजी ॥ विन काम | ३ || तुम भवमोचन ज्ञानसुलोचन. केवलआयकजी ॥ विन कान० || ४ || भागचन्द भाग प्रापनि, तुम मन ज्ञायकजी ॥ विन कीम० ॥ ५ ॥ 2. Ve माम कामी । अहो यह उपदेशमाही. खूप चिन लगावना होगा कल्यानतंरा. सुख अनंत बावना ॥ टेक ॥ रहिन que fear देव जिनपनि ध्यावना | inter निर्मल अन मुनि निनहि शीस नायना || अहो || १ || धर्म अनुकंपा प्रधान नव को सनावना। समनत्वपरीक्षा करि ॥ अहो ॥ २ ॥ हार्दिकने एक याचना | वा विधि विमल अन्य श्रद्धा लावना चैतन्य र परिकादिः भव्यनको वचन ॐ पंक बहाना || अहो | जे. शठनको नसुहावना । चन्द्र लमि जिमि कुमुद

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