Book Title: Jainpad Sangraha 02
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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दिनीभाग
यंत्र उदयमें हर्ष विपादन राम्रै सम्यगदर्शनज्ञान चरननप, भावसुबारस चा ॥ ऐसे० ॥ ३ ॥ परकी इच्छा नजि निज मजि. पूर्व कर्म खिरा । स क कर्म भिन्न अवस्था सुमन चिन चाव ॥ ऐसे० ॥ ४ ॥ उदासीन शुद्धोपयोगरत सबके दृष्टा ज्ञाता | बाहिरूप नगन समनाकर, भागचन्द सुख दाता ॥ ऐसे० ॥ ५ ॥
२५
राग जंगला |
तुम गुनमनिनिधि हो अरहेन ॥ टेक ॥ पारन पावन तुमरो गनपनि, चार ज्ञान घरि संन ॥ नुम गुन० ॥ १ ॥ ज्ञानकोप सब दोष रहित तुम अलग्य अमूर्ति अचिंत ॥ तुम गुन० || २ || हरिगन अग्मन तुम पवारिज, परमंटी भगवन || तुम गुनः ॥ ३ भागचन्दके घटमंदिर में वह सदा जयवंत ॥ तुम TFO || 2 ||
२६
राग जंगलया |
शाfa axe सुनिराई र ला उत्तर गुनगन महित (मृल गुन सुभग) यरान सुहाई ॥ टेक ॥ त रथ आरूढ अनुपम, धरम सुमंगलदाई || शांति व रन० ॥ १ ॥ शिवरसनीको पानिग्रहण करि जाना नन्द पाई || शांति वरन० ॥ २ ॥ भागचन्द्र ऐसे

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