Book Title: Jainpad Sangraha 02
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ जैनपदसंग्रहवनसको, हाथ जोर सिरनाई ॥ शांति घरन० ॥ ३ ॥ ३७ । राग जंगला। । म्हाकैं जिनमूरति हृदय बसी बसी ॥ टेक ॥ यद्यपि करनारसमय तद्यपि, मोह शत्रु हनि असी असी “॥ म्हा० ॥ १॥ भामंडल ताको अति निर्मल, निकलंक जिमि ससी ससी ॥ म्हा० ॥ २॥ लखत होत अति शीतल मति जिमि, सुधा जलधिमें धसी धसी ॥ म्हा० ॥३॥ भागचन्द जिस ध्यानमंत्रसों, ममता नागिन नसी नसी ॥ म्हा॥४॥ . २० राग खमाच। ज्ञानी मुनि छै ऐसे स्वामी गुनरास ॥ टेक ॥ जिनके शैलनगर मंदिर पुनि, गिरिकंदर सुखवास ॥ ॥ ज्ञानी० ॥ १॥ निष्कलंक परंजक शिला पुनि, दीप मृगांक उजास ॥ ज्ञा० ॥२॥ मृग किंकर करना वनिता पुनि, शील सलिल तपग्रास ॥ ज्ञानी ॥३॥ भागचन्द ते हैं गुरु हमरे, तिनहीके हम दास ॥ ज्ञानी०॥४॥ ___ . . . . राग खमाच । , .. श्रीगुरू है उपगारी ऐसे वीतराग गुनधारी चे ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53