Book Title: Jaindharmvarstotra Godhulikarth Sabhachamatkareti Krutitritayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Bhadrankar Prakashan
View full book text ________________ 141 परिपाटीचतुर्दशकम् . [अष्टेति अष्ट कर्माणि 'चत्तारि अट्ठ' कर्मरिपुरहिताः / 'दो अ' इति द्वाभ्यां भेदाभ्यां जन्मतो विहरमानाद् वा // 13 // ] भरहेरवएसु दस जहन्नो जिणवरा नमिज्जंति / उव्वी-पुहवी तस्स य ईसा-पहुणो भुवणबंधू // 14 // [भरतैरावतेषु दश जघन्यतो जिनवरा नम्यन्ते / उर्वी-पृथ्वी तस्य च ईशाः-प्रभवो भुवनबन्धवः // 14 // ] अष्टमी परिपाटी-१६० जिनवन्दनम् अरिचत्ता अड दसगुण असीइ गुणिया य दोहि सट्ठिसयं / सव्वसुं विजएसुं वंदामि जिणे विहरमाणा // 15 // [अरित्यक्ता अष्य दशगुणाः अशीति: गुणिता च द्वाभ्यां षष्टिशतम् / सर्वेषु विजयेषु वन्दे जिनान् विहरमाणान् // 15 // ] नवमी परिपाटी-१७० जिनवन्दनम् अट्ठ त्ति एगसेसे अट्ठहि गुणिआ य अट्ठ चउसट्ठी / दस दसगुणिआ य सयं चत्तारि अ दो अ मेलविआ // 16 // [ अष्टेति एकशेषे अष्टभिर्गुणिताः च अष्ट चतुःषष्टिः / दश दशगुणिताः च शतं चत्वार: च द्वौ च मिश्रिताः // 16 // ] सित्तरिसयं जिणिंदा एए पन्नरससु कम्मभूमीसु / वंदामि विहरमाणा दह समए अजिअसामिस्स // 17 // [सप्ततिशतं जिनेन्द्रान् एतान् पञ्चदशसु कर्मभूमिषु / वन्दे विहरमाणान यथा समये अजितस्वामिनः // 17 // ] दशमी परपाटी-चतुर्विंशतित्रितयवन्दनम् अट्ठदस चउहि गुणिआ बावत्तरि हुंति भरहवासंमि / तिण्णि वि चउवीसीओ तित्थयराणं पणिवयामि // 18 // [अष्टादश चतुभिर्गुणिता द्विसप्ततिर्भवन्ति भरतवर्षे / तिस्नो वा चतुर्विंशती: तीर्थङ्कराणां प्रणिपतामि // 18 // ] एकादशी परिपाटी-पञ्चचतुर्विंशतिवन्दनम् चत्तारि अट्ठ बारस ते दसगुणिआ सयं च वीसहियं / पंच वि चउवीसीओ पंचसु भरहेसु वंदामि // 19 // [चत्वारः अष्ट द्वादश ते दशगुणिताः शतं च विंशत्यधिकम् / पञ्चापि चतुर्विंशती: पञ्चसु भरतेषु वन्दे // 19 // ]
Loading... Page Navigation 1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194