Book Title: Jaindharmvarstotra Godhulikarth Sabhachamatkareti Krutitritayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Bhadrankar Prakashan
View full book text ________________ 154 श्रीजैनधर्मवरस्तोत्रम् ग्रन्थादिसूचनम् पृष्ठाङ्कः 22 29 क्रमाङ्कः पाठः 131. जो गुणइ लक्खमेगं 132. ज्ञानं क्रिया च द्वयमस्ति यत्र 133. ज्ञानं च दर्शनमथो 134. ज्ञानविष्णुः सदा प्रोक्त१३५. ज्ञानस्य ज्ञानिनां चैव 124 96 136. टङ्को नीलकपित्थेऽपि 46 हैमानेकार्थे श्लो० 24 120 118 पद्मा० 17, 394 पद्मा० 17, 235 18 पद्मा० 17, 393 120 22 योग-वृत्तौ 137. तत्र वल्लिवलयेन सङ्कले 138. तद्धनीवनबिलागसागरै 139. तद् भोजनं यद् गुरुदत्तशेषं 140. तपः सर्वाक्षसारङ्ग१४१. तस्य वल्लिकुलकुञ्जनिकाये 142. तातादेशवशादपीह नृभवे 143. 'तित्थयरत्तं संमत्त० 144. तिथिपर्वोत्सवाः सर्वे 145. तिर्यक्षु क्षामकुक्षि० 146. तिलकयुतललाट० 147. तीर्णे सङ्कीर्णजीर्णे 148. तीर्थकृत् प्रथमः स्वामी 149. तीर्थोदकैथुतमलैरमल० 150. तेनेति चक्रोदितगर्हणाभि१५१. तैरात्मा सुपवित्रितो निजकुलं 152. तैश्चन्द्रे लिखितं स्वनाम विशदं 153. तोयत्यग्निरपि सजत्यहिरपि 154. त्यजेदेकं कुलस्यार्थे 155. त्रिधा मनो-वाक्-तनुभिस्त्रिधैषु 73 प्रतिमा-वृत्तौ 15 पद्मा० 18, 176 106 73 119 पद्मा० 17, 346 105 105 उपदेशतरङ्गिण्यां (पृ. 247) सिन्दूर० श्लो० 40 17 11 28 156. दक्षः प्रजापतौ रुद्र० 70 हैमाने 1. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्तौ 174 / 2. प्रेक्ष्यतामुपदेशतरङ्गिणी (पृ० 226) /
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