Book Title: Jaindharmvarstotra Godhulikarth Sabhachamatkareti Krutitritayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Bhadrankar Prakashan
View full book text ________________ उपाध्यायश्रीविनयविजयगणिगुम्फितं // परिपाटीचतुर्दशकम् // नमिऊण बद्धमाणं थुणामि जिणचेइए विविहरूवे / 'चत्तारि अट्ठ दस दो अ' इमाएँ गाहाएँ संगहिए // 1 // [नत्वा वर्धमानं स्तौमि जिनचैत्यानि विविधरूपाणि / 'चत्तारि अट्ठ दस दो य' अस्यां गाथायां सङ्ग्रहीतानि // 1 // ] प्रथमा परिपाटी-अष्टापदतीर्थवन्दनम् १चत्तारि अट्ट दस दो य वंदिया जिणवरा चउव्वीसं / परमट्ठनिटिअट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु // 2 // [चत्वारः अष्ट दश द्वौ च वन्दिता जिनवराः चतुर्विंशतिः / परमार्थनिष्ठितार्थाः सिद्धाः सिद्धि मम दिशन्तु // 2 // ] चत्तारि दक्खिणाए पच्छिमओ अट्ठ उत्तरदिसाए / दस पुव्वाए दो अट्ठावयम्मि वंदे चउव्वीसं // 3 // [चत्वारो दक्षिणायां पश्चिमायां अष्ट उत्तरदिशायाम् / दश पूर्वायां द्वौ अष्टापदे वन्दे चतुर्विंशतिम् // 3 // ] पुव्वाए उसभमजिअं दिक्खणओ संभवाइचत्तारि / अड पच्छिमे सुपासाइ धम्माई दस उ उत्तरओ // 4 // [ पूर्वस्यां ऋषभमजितं दक्षिणतः सम्भवादिचत्वारः / अष्ट पश्चिमे सुपाश्र्वादयः धर्मादयः दश तु उत्तरतः // 4 // ] वण्णतणुमाणलंछणपमुएहिं अलंकिया नियनिएहि / भरहेसरनिम्मविया अट्ठावय जिणवरा एए // 5 // [वर्णतनुमानलाञ्छनप्रमुखैः अलङ्कृता निजनिजैः / भरतेश्वरनिर्मापिता अष्टापदे जिनवरा एते // 5 // ] द्वितीया परिपाटी-सम्मेतशिखरतीर्थवन्दनम् चत्तारिउ अरिमुक्का अट्ठ दस दो य जिणवरा एवं / सम्मेयसेलसिहरे वीसं परिनिव्वुए वंदे // 6 // [त्यक्तरिपवः अरिमुक्ता अष्ट दश द्वौ च जिनवरा एवम् / सम्मेतशैलशिखरे विंशतिं परिनिवृतान् वन्दे // 6 // ] 1. इयं तु पूर्वोक्ता गाथा / 2. 'चतुर उदरे मुक्त्वा ' इत्यपि भाति /
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