Book Title: Jainattva Kya Hai
Author(s): Udaymuni
Publisher: Kalpvruksha

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Page 23
________________ के संयोग से जैसे-आत्मा की उत्पत्ति चार्वाक मानते, वैसा ही वैज्ञानिक अजैविक तत्वों से जीव बनाने में लगे हैं। महावीर का दृढ़ अकाट्य सिद्धान्त-जड़ कभी चेतन नहीं होता, चेतन जड़ नहीं होता-ईश्वरवादी मानते हैं-उस चैतन्य महाप्रभु ने इस जड़ जगत और चेतन को उत्पन्न किया। चैतन्य आत्मा, जीव कभी अजीव, जड़ पदार्थ को उत्पन्न नहीं कर सकता। कोई जड़-पुद्गल पदार्थ को नष्ट भी नहीं कर सकता। चेतन, चेतनरूप, जानने-देखने-अनुभव करने रूप ही कार्य करता है, जड़-पुद्गल शरीर अपने गुणों, वर्ण-गंध-रस-स्पर्श में निरन्तर परिणमन, पर्यायान्तर करता है। चेतन (आत्मा) का मात्र भाव जुड़ता है, निमित्त कारण से उसमें परिणमन कुछ भिन्न प्रकार से होता है, कार्य दोनों अपने-अपने गुणों, स्वभाव के अनुसार ही करते हैं। घास-फूस-पत्तियों में खाद बनाने की सहज शक्ति है, जंगल में बूंदाबांदी, बरसात के पानी के मिश्रण से बनता रहता है। किसान सबको गड्ढे में किसी प्रक्रिया से, गोबर-गोमूत्र-पानी से मिश्रित कर भरे तो दो माह में खाद बना लिया। खाद बनाने की सहज-स्वाभाविक शक्ति तो उन्हीं में है, किसान के कारण वह शीघ्र-अच्छा खाद बना-कहलाया। चाहे जड़-पुद्गल पदार्थ हो या चेतन पदार्थ, दोनों द्रव्य पूर्णतः पृथक हैं। जड़ कभी चेतन नहीं बनता, चेतन जड़ नहीं बनता। अंशतः ईश्वरवादी, चार्वाकवादी, एक अपेक्षा से आत्म सन्तति को भौतिक और अभौतिक (जड़ और चेतना) का मिश्ररूप मानने वाले गौतम बुद्ध और नव-चार्वाकवादी वैज्ञानिकों को महावीर का उत्तर है-ऐसा कभी हुआ नहीं, होता नहीं, होगा नहीं कि जड़ (या पुद्गल) जीव (या चेतन) बन जाए या चेतन जड़ हो जाए। कोई वैज्ञानिक यह मानते हों कि हमने जीवत्व शक्ति वाले नई प्रजाति के बीज, भेड़-बकरी, गाय-भैंस बनाए तो महावीर मानते हैं, कहते हैं कि उसका जड़-पुद्गल-भौतिक शरीर ही बनाया, जीव (चेतन या आत्मा) तो अन्य किसी गति या योनि में से उसमें आकर रहता है। चेतन बनाने की शक्ति न तो ईश्वर में है, न पंचमहाभूतों में है, न वैज्ञानिकों की दो या अधिक वस्तुओं के मिश्रण से उस ऊर्जा (एनर्जी) में है। (5) नियतिवादी दर्शन-जो कुछ होता है वह नियति में निश्चित है। जो होना होता है, वही होता है, जो नहीं होना होता, वह नहीं होता। होनी-अनहोनी को कोई टाल नहीं सकता। जीव का (मनुष्य का) पुरुषार्थ कुछ नहीं कर सकता। दो मित्रों ने परीक्षा की एक जैसी तैयारी की, उत्तीर्ण मित्र की उत्तर पुस्तिका जांचते 214

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