Book Title: Jainattva Kya Hai
Author(s): Udaymuni
Publisher: Kalpvruksha

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Page 69
________________ संवृत अणगार कैसे निर्जरा करते हैं, आगम के दृष्टांत से समझें। पूर्व में, निन्यानवे लाख भवपूर्वकर्म बांधे। बड़ी पत्नी । (पति ने बड़ी से सन्तान न होने से नया विवाह कर लिया) छोटी के पुत्र हो गया। पति का सारा प्रेम बड़ी से हट छोटी से हो गया। वह महादुखी हो, इन्द्रिय सुखों हेतु तड़फती रहती थी। दुर्भाव-यह छोटी (सौत मर जाए तो, इसका बेटा मर जाए तो अच्छा हो, फिर गाढ़ भाव-मार ही डालूं, दोनों को। मरवा दूं। इतने में भोली पूछने आई, बहन ! बेटे के सिर में दुख रहा दिखता है, बहुत रो रहा है। सुझाव बड़ा आसान, एक मोटा रोटा बना, जो गरम हो, गरम-गरम ही इसके माथे पर बांध देना, सिकाई हो जाएगी, ठीक हो जाएगा। भोली ने वैसा ही किया। गरम रोटा बांध सुला दिया। बच्चा सिसकियां ले रहा था। सोचा, थोड़ा गरम है, इससे रो रहा है, सिकाई होने से ठीक हो जाएगा, नींद आ जाएगी। बच्चा छोटा था। माथा नरम था। रोटा गरम था। माथा सीज गया। रोते-रोते बच्चा मर गया । निन्यानवे लाख भव बाद बड़ी पत्नी, आज गज सुकुमाल अणगार के रूप में, महाशमशान में, साधनारत, ध्यानमग्न हैं। वह बच्चा आज सोमिल ब्राह्मण के रूप में सामने है उसकी बेटी को कृष्ण महाराज, सहोदर गजसुकुमाल के विवाह हेतु ले गए, विवाह नहीं कर त्यागी दुष्ट कहीं का, मेरी बेटी को विधवा बड़ा मुनि न यहां खड़ा ढोंग कर रहा है। कोपाविष्ट हो, गीली मिट्टी की पाल सिर पर बांधी। धगधगाते खैर के अंगारे एक ठीकरे में भरे महामुनि के माथे पर धरे और डरकर भागा। एक प्रवचन सुन अनन्त कर्म की निर्जरा कैसे? पति सुख पीड़ा में विह्वल, सौत पुत्र, दोनों को मार मरवा डाल षडयंत्र, उसी की पूर्ति में, अनायास अवसर जान, कपटमय सुझाव दिया। ये सारे घोर पाप बंध। बच्चे को मरवा डाला, मनुष्य हत्या का घोर पाप बंध। अज्ञान, मिथ्यात्व दोनों से मिथ्या रति भाव, रति क्रीड़ा का भाव आदि से मनुष्य हत्या, अनन्त कर्म बांधे। इतने भव में भटक, पुण्य से मनुष्य, विशिष्ट पुण्य किसी पूर्व भव में बांधा, उसके फल से, देवकी महारानी के पुत्र, कृष्ण महाराज के सहोदर बने तीर्थंकर अरिष्टनेमि से तत्व सुना, आत्मा शरीर की भिन्नता का भान हुआ। अनन्त भव भ्रमणकर्ता दर्शन मोहनीय क्षय हुआ, शुद्ध आत्मा का ज्ञान, भान, अनुभव हुआ, उससे अनन्तानुबंध कराने वाला घोरतम क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय कृश हो गया। इतने कर्म जो पूर्व में गाढ़ बांधे थे, एक प्रवचन सुन, निर्जरित कर दिए। " 67

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