Book Title: Jainattva Kya Hai
Author(s): Udaymuni
Publisher: Kalpvruksha

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Page 82
________________ " पर है। इसे कहा महावीर कर्मवादी नहीं अकर्मवादी हैं। कर्म से अकर्म में, क्रिया से अक्रिया में प्रवृत्ति से निवृत्ति में ले जाने वाली सिद्ध परमात्मा को अक्रिय, अकर्म, निष्क्रिय, अम्मा, निःकम्मा (निकम्मा, कुछ काम नहीं, कुछ करना नहीं) ऐसा है। ऐसा मैं (आत्मा) जानो, मानो, देखो, वैसे हो जाओ। परम आनंद में लीन। शरीर, इन्द्रियां नहीं होते भी, परम आत्मिक, अनन्त आनन्द में लीन हैं। अव्याबाध सुख: में रहते हैं। वर्तमान संसारस्थ- आत्मसाधक भी शरीर की, इन्द्रियों की, मन की समस्त ऊंची-नीची क्रियाओं से अप्रभावित, 'अक्रिय होता जाता है, एक दिन अन्तःक्रिया कर मुक्त हो जाता है। ऐसा मुक्ति का, मोक्ष का मार्ग है। ज्ञान दर्शन, चारित्र की एकतारूप मोक्ष मार्ग है- ज्ञान, दर्शन, चारित्र की एकता, अविरुद्धता, एकरूपता मोक्ष मार्ग है। आचारांग आदि शास्त्र, शब्द ज्ञात तो हो पर आत्म ज्ञान न हो, नव तत्वादि का श्रद्धान तो हो पर आत्म दर्शन न हो, व्रत- महाव्रतादि रूप चारित्र तो हो पर स्वरूपरमणता, आत्मरमणता न हो। इन तीनों बाह्य से आगे बढ़कर वह शुद्ध स्वरूप प्रकट होते जाना, आत्मा को आत्मा का ज्ञान, आत्मा का दर्शन, आत्मरमणता रूप, इन तीनों अनन्त गुणों की एकता रूप 'आत्मा हो जाना' यह मोक्ष है। उस परम-चरम पर पहुंचने रूप आत्म-साधना रत्नत्रय ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप मोक्ष मार्ग है। उस पर चौथा गुण स्थान वाला धीमें चलने वाला, पांचवां तेज चलने वाला, छठा सातवां गुण स्थान वर्ती आगे वाले सभी तेजी से दौड़ने वाले मार्ग एक है। सभी तीर्थंकर इसी का प्रतिपादन करते हैं, विरोध नहीं है। एकरूपता है। मनानीत अवगाहना अगुरुलघुत्व आव्याबाध , शब्द-कोष = मन से परे, मन से अतीत, मन से मनन नहीं - आत्मा का प्रत्यक्ष ज्ञान । = वह क्षेत्र जिसे कोई द्रव्य घेरता है। संसार अवस्था में आत्मा प्राप्त संयोगित शरीर के प्रमाण से आत्मा के प्रदेश फैलते सिकुड़ते हैं। सिद्ध परमात्मा के अरुपी अमूर्तिक आत्मा की अवगाहना स्थिर हो जाती है उसे अटल अवगाहना कहते हैं। = न अधिक न कम, द्रव्य के गुण कभी घटते-बढ़ते नहीं। सिद्ध परमात्मा को आत्मिक आनंद, सुख में कोई बाधा नहीं रहती। = 80

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