Book Title: Jainattva Kya Hai
Author(s): Udaymuni
Publisher: Kalpvruksha

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Page 50
________________ शेयर-बाजार को ऊंचा-नीचा करने में निपुण करोड़ों रुपए कमाते हैं, विदेशी कंपनियां लूट-ले जा रही हैं। जो वस्तु निश्चित वादे के समय पर दी-ली जाएगी, विक्रय मूल्य भुगतान होगा, वह वैधानिक है परन्तु वायदा-तिथि पर मूल्य का अन्तर ले-देकर सौदा निपटा दिया जाता है, वहीं वह वैध सट्टा, जुआ बन जाता है। ऐसे सभी जुओं में जैन कहे जाने वाले भी खूब लगे हैं, बरबाद होते भी देखे गए हैं। सहज, बिना परिश्रम के, रातों-रात करोड़पति-अरबपति बनने की ललक, लालच, आकर्षण, पागलपन में होने वाले ये जुए महावीर के शासन में भयंकरतम, नरकगति का, नरक-तिर्यंच पंचेन्द्रिय-बार-बार चतुर्गति-भ्रमण के कारणरूप कर्म बंध करवाता है। इस महापाप-कुव्यसन से बचो-बचाओ। चोरी (महाचोरी)-चोरी 18 पापों में है। राज्य के कानूनों या राज्याधिकारियों की आंखों में धूल झोंककर, लाखों-करोड़ों की करचोरी करना, बेनामी सौदे करना, माल, धनोपार्जन हेतु कोई भी चल-अचल सम्पदा ऊपर-की-ऊपर खरीदना-बेचना, कहीं कोई लेखा नहीं, कर-चुकाना नहीं-ऐसी काली-कमाई का अनुपात 90 प्रतिशत और सच्चे लेखे लिख कर चुकाकर कमाई का प्रतिशत दस प्रतिशत कहा जाता है। अरबों रुपए राजनेताओं के यहां लोग छप्पर फाड़कर डाल जाते हैं। अवैध को वैध अनियमित को नियमितीकरण करवाने से करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं, काफी हिस्सा ऐसा "वैध है" का रुपया लगाने वाले राज्याधिकारियों, सचिव-मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री भी डकार जाते हैं। भावी बजट में लगने वाले कर, आयात-निर्यात नीति आदि के सुराख, वे ही अधिकारी पहले किसी को निकालकर दे देते हैं, व्यापारी करोड़ों-अरबों कमा लेते हैं, वे सरकार के वित्त-अधिकारी-सचिव-मंत्री भी करोड़ों कमा लेते हैं। घपले, गबन, घोटाले, कांड कई नाम हैं। कोई हर्षद मेहता जैसे बैंक उच्चाधिकारियों, वित्त-सचिव-मंत्री आदि से मिल करोड़ों रुपयों की हेराफेरी करने वाले भी हुए हैं। भगवान् महावीर के शासन में यह भयंकर कुव्यसन, नरक-तिर्यंच में दुख, महादुख देने वाला, भवों भव भटकाने वाला महापाप कहा गया है। बचो बचाओ। पाप को पाप मानो-कोई अपने सांचे बनाकर स्वयं ही, स्वयं को तर्क देकर, काल, जमाना आदि का बहाना कर, ऐसे कुव्यसनों को, 18 पापों को, कुव्यसन या पाप न माने तो न माने, इससे वह पाप नहीं है, ऐसा नहीं होगा। कर्म बंध, पाप बंध तो होगा। वैसे तो व्यावहारिक जगत में भी ऐसे काले कारनामों की विभीषिकाओं के 1484

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