Book Title: Jainagam Siddh Murtipuja Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday Parivar View full book textPage 9
________________ ६ 'जैनागम विरुद्ध मूर्तिपूजा' यद्यपि मंदिर और मूर्ति को उपयोगी समझकर आज अधिकांश स्थानकवासी संत और स्थानकवासी लोग अपने गुरु के समाधिमंदिर, मूर्ति, चबूतरा, छत्री आदि निर्माण करवाते ही है और आजकल मन्दिर भी बनवा रहे हैं। जैसे स्थानकवासी दिनेशमुनि कच्छ बीदडा, शिवमुनि अम्बाला आदि, इस शुभकार्य में हिंसा पाप मानते नहीं हैं। क्योंकि यदि इसमें हिंसा का पाप माने तो वे क्यों इसे बनवाते ? और धन बर्बाद करके पाप क्यों मोल लेते ? जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा यानि हाथ कंकण को आरसी की आवश्यकता ही नहीं रहती - फिर भी जब मंदिर और मूर्ति की बात आती है तो स्थानकवासी संत आदि असत्य का अनुचित कोलाहल मचाते हैं, इसलिए हमने " जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा" नाम की यह सत्यसंदेश किताब छपवायी है, ताकि श्रद्धावंत धर्मीलोग भ्रमित न होवे । श्री रतनलालजी डोशी ने अपनी "जैनागम विरुद्ध मूर्तिपूजा" पुस्तक में कही की ईंट - कहीं का रोडा, भानुमति ने कुबडा जोडा - वाला हाल प्रस्तुत किया है । श्री जैनागमों में एक भी स्थल पर मूर्तिपूजा का विरोधी वाक्य या अंश वे बता नहीं सके है । क्योंकि यदि जिनमंदिर व जिनमूर्ति पूजा का श्री आगमशास्त्रों में विरोध होता तो जिस प्रकार भगवान श्री महावीरस्वामीने हिंसा का या कामभोग का स्पष्ट निषेध किया है, जैसे कि - सव्वे जीवा, सव्वे पाणा, सव्वे सत्ता न हन्तव्वा, अथवा सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा... इसी प्रकार जिनमंदिर का और जिनपूजा का भी स्पष्ट निषेध होता, वह नहीं किया है, इससे भी स्पष्ट होता है कि- जैनागमों में मंदिर व मूर्ति का निषेध नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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