Book Title: Jainagam Siddh Murtipuja
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 12
________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा आदि परंपरा स्वयं उन्मार्ग का एवं महामिथ्यात्व का प्रचार करती है, देखिये - (१) आलू-प्याज-मूली - गाजर - लहसून आदि जमीकंद में अनंतजीव है, ऐसा हम मानते नहीं है, ऐसा कहना असत्य है, हम स्थानकवासी संत तो आलू की चिप्स, प्याज के पकोड़े, मूली की भाजी, गाजर का हलवा, लहसुन की चटनी बड़े चांव से खाते हैं और खिलाते हैं । जमीकंद खाने में हिंसा है या पाप है ऐसा आगमों में लिखा है - यह हमारी स्थानकवासी संत परंपरा के अनेक तथाकथित विद्वान् सन्त नहीं मानते है । (२) तीर्थंकर का खून सफेद होता है - ऐसा आगमशास्त्रों में लिखा है- पर हम स्थानकवासी इसे गपौड़ा (गप्प ) समझते हैं । (३) सद्योजात शिशु महावीर के चरणस्पर्श से मेरु कंपायमान हुआ था, यह भी आगमिक झूठ है, इसका हम स्थानकमार्गी कभी स्वीकार नहीं करते है, क्योंकि यह कैसे संभव हो सकता है । (४) महादेह क्षेत्र में सीमंधरस्वामी आदि २० तीर्थंकर इस समय विद्यमान हैं, ऐसी फालतू बातों में हम स्थानकवासी थोडा सा भी विश्वास नहीं रखते हैं, कौन वहाँ देखने गया है, आगमों में लिखा है - यह तो पाठ भेद है, इस पर कोई भी विद्वान् कदापि विश्वास नहीं कर सकता । (५) रजस्वला महासती - साध्वी की अपवित्रता और उसके लिए तीन दिन शास्त्र स्वाध्याय निषेध की बात आगमों मे कहीं लिखी नहीं है, ऐसी बात आज के काल में सर्वथा अविश्वसनीय है । इसलिए हम स्थानकवासी ये बात नहीं मानते । हमारे स्थानकमार्गी समाज में तो साध्वी-सतियां जी आगम स्वाध्याय करती हैं, हम इसमें नहीं मानते । (६) सूर्य-चंद्र के विमान को भी हम शाश्वत नहीं मानते है फिर इसमें जिनालय की बात तो गप्प ही है । पहिले ये आकाश में नहीं थे, बाद में आ गये है । पहले से थे इस में कोई प्रमाण नहीं है, ऐसी अंधश्रद्धा में हम स्थानकवासी को किंचित् मात्र भी विश्वास नहीं है । भले ही चाहे कोई आप्तपुरुष के नाम से हमें भ्रमित करे पर हम भरमाने वाले - बहकनेवाले . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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