Book Title: Jainagam Siddh Murtipuja
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा हो जाते थे, पेड नम जाते थे, पक्षी प्रदक्षिणा देते थे ऐसी अनहोनी बातों में हम विश्वास नहीं करते हैं। (५) तीर्थंकर के ज्ञानातिशय का प्रभाव ऐसा था कि- एक साथ में लाखों व्यक्तियों के लाखों प्रश्नों के उत्तर में भगवान एक वाक्य बोलते थे। - यह कैसे संभव हो सकता है ? लगता है कि - आगमशास्त्र जब ग्रंथारुढ हुए तब छद्मस्थ आचार्यों ने ऐसी झूठी बाते लिख डाली हों। जैनागमों में कुतर्क को भावशत्रु की उपमा दी गई है, यथाबोधरोग क्षमापाय, श्रद्धाभंगोऽभिमानकृत् । कुतर्कः चेतसो नित्यं, भावशत्रुः अनेकधा । अर्थ : कुतर्क यह आत्मा का सदैव का अनेक रीत से भावशत्रु नुकसान कर्ता है, क्योंकि कुतर्क (१) बोधरोग = सद्बुद्धि ज्ञान, सन्मार्ग को ही रोग लगाने वाला है जिससे जीव अपने बोध को मलिनं करता है । कुतर्क (२) क्षमापाय = क्षमा का नाश करनेवाला है । कुतर्क सर्वज्ञ के वचन से विपरीत ऐसे असद् पदार्थों पर अभिनिवेश करता है, जिससे क्षमा नाश होती है, जिससे जीव अपने बोध को मलिन करता है । कुतर्क (३) श्रद्धाभंग = स्वयं की एवं औरों की सश्रद्धा-विश्वास का नाश करनेवाला है, मिथ्यात्व लानेवाला है, क्योंकि यह आगमवचन को स्वीकारता नहीं । कुतर्क (४) अभिमानकृत् = अभिमान करानेवाले, मैं ही सच्चा हूँ, बाकी सब झूठे हैं- ऐसा मिथ्याभिमान कराने वाला है । जैनागम विरुद्ध मूर्तिपूजा में श्री रतनलालजी डोशी ने अनेक कुतर्क किये है, संसार को बढ़ाया है। कुतर्क करके - आगमवचनों को असत्य ठहराकर, स्थानकवासी संत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 352