Book Title: Jainagam Siddh Murtipuja Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday Parivar View full book textPage 8
________________ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं श्री जीरावला पार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा ॥ १. प्रस्तावना धर्मध्वंसे क्रियालोपे, स्वसिद्धान्तार्थ विप्लवे । अपृष्टेनाऽपि शक्तेन वक्तव्यं तं निषेधितुम् ॥ जब जब धर्म का ध्वंस हो रहा हो, जिनशासन में आन्तरिक एवं बाह्य क्रिया का लोप हो रहा हो, जब परमतारक परमात्मा के बताए आगमों के सिद्धांत का नाश हो रहा हो, ऐसे समय में कोई पूछे या ना पूछे शक्तिसंपन्न आत्मा को उन्मार्ग का उत्थापन व सन्मार्ग का संस्थापन करना, ऐसी प्रभु आज्ञा है । , अभी मेरे हाथ में स्थानकवासी द्वारा निकाली कई पुस्तके आई । वैसे कभी भी कोई जवाब देना या पुस्तक छपवाना नही सोचा था परंतु 'जैनागम विरुद्ध मूर्तिपूजा' पुस्तक को देख मन में विचार आया कि अगर इस समय खंडन नहीं किया गया तो धीरे धीरे बीज का वृक्ष बन जाएगा। अगर समयसमय पर अनुपयोगी वृक्षादि को काटा न जाए तो वे सबको परेशान करते हैं । जैन शासन में परमात्मा की जन्मराशि पर बैठा भस्मग्रह बहुत ही हानिकारक साबित हुआ है। इस ग्रह के प्रभाव के समय में कई तरह का विग्रह हुआ है। नए नए प्रभु आज्ञा विरुद्ध पंथ भी निकले हैं । कई निन्हव भी हुए हैं। बस इसी श्रेणी में आता है स्थानक पंथ अर्थात् ढुंढक मत बिना आगम आधार बिना कोई सोच बस केवल द्वेष के वश चल पडा पंथ यह है स्थानकवासी ढूंढिया मत । स्थानकवासी समाज में मूर्धन्य पंडित माने जानेवाले - लेखक श्री रतनलालजी डोशी (सैलाना वाले) ने मूर्तिपूजा विरुद्ध एक किताब छपवायी है, जिसका नाम है - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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