Book Title: Jain Tattvasara Saransh Author(s): Surchandra Gani Publisher: Jindattasuri Bramhacharyashram View full book textPage 9
________________ उपोद्घात. जैनतत्त्वसार सारांश का यह द्वितियावृत्ति का समावेश दो विभागो में करा गया है, जिस में प्रथम भाग में जैनधर्म सम्बन्धी दिग्दर्शन करा गया है। उसी के अन्तर्गत जैनधर्म के सर्वमान्य सिद्धान्तों का समावेश करने में आया है और जैनधर्म की प्राचीनता, महत्त्वता के लिये प्रो० हरमन जेकोबी तथा डाक्टर नाथर टोल्ड जैसे समर्थ विद्वानों के अभिप्रायों का उल्लेख करने में आया है। उसी प्रकार जैनधर्म का महान सिद्धांत की अनादि सत्यता और विश्वव्यापकता, बुद्धिज्ञान की महत्त्वता का ऐतिहासिक दृष्टि से वर्णन किया गया है और जैनधर्म में अन्य दर्शन किस प्रकार समा जाते हैं मुकाबला कर के दिखाया है। उस के पश्चात् जैनधर्म का अटल सिद्धान्त स्थाद्वाद और उस का किंचित् स्वरूप वर्णन करते हुवे महान विद्वानों के अभिप्राय भी दर्ज कीये गये है, जिस से पढनेवालों को असली स्वरूप शीघ्र समझ में आ सकें। स्याद्वाद का स्वरूप वडा ही गंभीर है। वस्तुस्थिति का स्वरूप बताने में सब से पहिला नम्बर है। वस्तुमात्र में अनेक धर्म समावेश होते है, परन्तु जिसे दृष्टिकोण से देखा जाता है वैसा ही स्वरूप दीखता है। रेती देखने में भारी मालम होती है, परन्तु लोहे की रेती से वह हलकी होती है। इसी प्रकार . . . ... .. ... .. ...Page Navigation
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