Book Title: Jain Tattvasara Saransh Author(s): Surchandra Gani Publisher: Jindattasuri Bramhacharyashram View full book textPage 7
________________ -. समर्पणपत्रम्. ." . : " श्रीमान्पूज्यतम, प्रातःस्मरणीय, पूज्यपाद, ज्ञानाम्भोनिधि, शासनप्रभावक, श्रीखरतरगच्छाधिपति, आचार्यवर्य श्रीमत् जिनकपाचन्द्रसूरिजी महाराज साहब की सेवा में आप साहब शान्त, दान्त, गंभीर, गुणज्ञ और विशुद्ध चारित्रवंत है. आपने युवावस्था सार्थक कर के प्रतिदेश विहार कर शासन की प्रशंसनीय सेवा की है और बहुत अज्ञानी जीवों को प्रतिबोध कर के स्वधर्म का सच्चा मार्ग बतलाया है. और आपश्रीने आप के विहारों में धार्मिक माङ्गलिक प्रसंगो में अठ्ठाइ उत्सव, तपोपधान, उद्यापनादि बहुतसें धार्मिक कार्य कराये है; और योग्य स्थलों में विद्यालय, ज्ञानमंदिर, जेसलमेर के भंडार के जीर्ण पुस्तकों का उद्धार आदि बनवा कर ज्ञान की अभिवृद्धि की है वे सब देख कर अत्यानन्द होता है. - आप श्रीमान का विशुद्ध चारित्र और श्री जिनेन्द्र प्रोक्त धर्म में अविचल श्रद्धा और धर्मक्रिया में अभिरुचि देख कर वहुत आनन्द होता है . आप के शिष्य-प्रशिष्य समुदाय मेंPage Navigation
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