Book Title: Jain Tattvasara Saransh
Author(s): Surchandra Gani
Publisher: Jindattasuri Bramhacharyashram

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Page 8
________________ आपश्री का अच्छा प्रभाव, परस्पर प्रेम और धर्मपरायणता देख कर आनन्द होता है. श्राप के प्रशस्य और विद्वान शिष्यरत्न प्रवर्तक मुनिश्री सुखसागरजी महाराज भी आप की स्तुत्य आज्ञा का अनुसरण कर के विशुद्ध संयम का पालन कर के ज्ञानादिमार्ग में अभिवृद्धि कर रहे है, और श्री जिनदत्तसूरिजी ब्रह्मचर्याश्रम को श्री प्रवर्तक मुनिजी उपदेशद्वारा स्तुत्य लाभ दे रहे है. ___इस तरह आपश्री और आप के शिष्य-प्रशिष्यादि समूह का हम लोंग पर भया हूवा उपकार से आकर्षित हो कर यह जैन तत्त्वसार सारांश की द्वितीयावृत्ति का हिंदी में लिखा हुआ पुस्तक आप साहब के करकमलों में समर्पण कर के मैं कृतकृत्य होता हूं. ली. पालीताणा ! आप का दासानुदास प्रेमकरण मरोटी सं १९९० ऑ० सेक्रेटरी श्री जिनदत्तसूरि आषाढ शुक्ल) ब्रह्मचर्याश्रम-पालीताणा.

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