Book Title: Jain Tattva Mimansa
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Ashok Prakashan Mandir

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Page 6
________________ जैन तत्वमीमांसा कहीं ज्ञानके प्रति ज्ञापक निमित्तरूपसे स्वीकार की गई है और कहीं क्रियाके प्रति निमित्त होनेसे वह कारकरूपमें स्वीकार को गई है । बिचार कर देखा जाय तो परमार्थसे अन्यमें निमित्तता है ही नहीं, यह तो विवक्षित कार्यका सूचक होनेसे स्वीकार की गई है या ज्ञानकी अपेक्षा उसका नियत विषय होनेसे स्वीकार की गई है। अविनाभाव सम्बन्ध वश कार्यकालमें पर द्रव्यमें निमित्तताको स्वीकार करना अन्य बात है, पर इतने मात्रसे उसे जिनागमके अनुसार कर्ता या प्रेरक कारण मानना अन्य बात है । ये दोनो एक नहीं है दो है। जैन दर्शनमें निमित्तता अन्य दृष्टिसे स्वीकार की गई है और कर्तृत्व अन्य दृष्टिसे स्वीकार किया गया है । * निमित्तताकी अपेक्षा भी विचार करने पर परमें निमित्तता केवल अविनाभाव सम्बन्धवश ही स्वीकार की गई है, जब कि प्रत्येक द्रव्यमें अपने निगत कार्यके प्रति निमित्तता एक द्रव्य प्रत्यासत्तिको लक्ष्यमें रख कर अविनाभाव सम्बन्धवश स्वीकार की गई है । उसमें भी इतना विशेष है कि उपादानरूप निमित्त और कार्यमें क्रमभावी अविनाभाव सम्बन्ध स्वीकार किया गया है और बाह्य निमित्त और कार्यमै व्यवहार से सहभावी अविनाभाव सम्बन्ध होता है । यहाँ एक द्रव्य पदसे न केवल सामान्यरूप वस्तु ली गई है और न केवल विशेषरूप ही । किन्तु नियत पर्यायसे युक्त सामान्यरूप वस्तु ली गई है । इसीलिये उसे नियत कार्यका परमार्थसे सूचक माना गया है। और इसीलिये उसे आगम में निश्चय उपादान या समर्थ कारण नामसे भी अभिहित किया गया है । तथा कार्यसे सर्वथा भिन्न वस्तुको बाह्य व्याप्तिवश मात्र निमित्त शब्दसे अभिहित किया गया है । है दोनो विवक्षित कार्यके प्रति निमित्त ही । इन्हीं सब तथ्यों को प्रकाशमें लानेकी दृष्टि से हमने तीसरे अध्यायके नाममे परिवर्तन किया है और उसके अन्तर्गत इन सब तथ्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है । प्रथम संस्करणमे चौथे अध्यायका नाम उपादान और निमित्त मीमांसा' है । किन्तु इस संस्करणमें उसका नाम 'निश्चय उपादान मीमांसा' कर दिया गया है। आगे छटे अध्यायका नाम कर्ता-कर्ममीमांसा है सो उससे इस अध्यायको स्वतन्त्र रखनेका कारण यह है कि प्रत्येक द्रव्यमें निश्चय उपादानता अपने नियत कार्यके अव्यवहित पूर्व समयमें ही बनती है, जब कि कर्तापन जिस समय विवक्षित कार्य होता है । उसी समय बनता है । इस तथ्यको स्पष्ट करनेके लिये चौथे अध्यायकी

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