Book Title: Jain Tattva Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-191 जैन-तत्त्वमीमांसा-43 मानते थे, तो कुछ उसे निष्क्रिय एवं कूटस्थ मानते थे। इन्हीं विभिन्न आत्मवादों की अपूर्णता एवं किसी नैतिक-व्यवस्था को प्रस्तुत करने की अक्षमताओं के कारण ही तीन नये विचार सामने आये- एक ओर थाउपनिषदों का सर्व-आत्मवाद या ब्रह्मवाद, दूसरी ओर था- बुद्ध का अनात्मवाद और तीसरी विचारणा थी- जैन-आत्मवाद की, जिसने इन विभिन्न आत्मवादों को एक जगह समन्वित करने का प्रयास किया। इन विभिन्न आत्मवादों की समालोचना के पूर्व इनके अस्तित्व-सम्बन्धी प्रमाण प्रस्तुत किये जाने आवश्यक हैं। बौद्ध पालि त्रिपिटक, अकृत जैनागम एवं उपनिषदों के विभिन्न प्रसंग इस संदर्भ में कुछ तथ्य प्रस्तुत करते हैं। बौद्ध पालि त्रिपिटक के अन्तर्गत सुत्तपिटक में, दीघनिकाय के ब्रह्मजालसुत्त में एवं मज्झिमनिकाय के चूल सारोपुत्त सुत्त में इन आत्मवादों के सम्बन्ध में कुछ जानकारी प्राप्त होती है। यद्यपि उपर्युक्त सुत्तों में हमें जो जानकारी प्राप्त होती है, वह बाह्यतः नैतिक-आचार-सम्बन्धी प्रतीत होती है, लेकिन यह जिस रूप में प्रस्तुत की गई है, उसे देखकर हमें गहन विवेचना में उतरना होता है, जो अन्ततोगत्वा हमें किसी आत्मवाद-सम्बन्धी दार्शनिक-निर्णय पर पहुँचा देती है। पालि त्रिपिटक में बुद्ध के समकालीन इन आचार्यों को जहाँ एक ओर गणाधिपति, गण के आचार्य, प्रसिद्ध, यशस्वी, तीर्थकर तथा बहुजनों द्वारा सुसम्मत कहा गया है, वहीं दूसरी ओर, उनके नैतिक-सिद्धान्तों को इतने गर्हित एवं निन्द्य रूप में प्रस्तुत किया गया है कि साधारण बुद्धि वाला मनुष्य भी इनकी ओर आकृष्ट नहीं हो सकता। अतः, यह स्वाभाविक रूप से शंका उपस्थित होती है कि क्या ऐसी निन्द्य नैतिकता का उपदेश देने वाला व्यक्ति लोकसम्मानित धर्माचार्य हो सकते हैं, लोकपूजित हो सकते हैं? - यही नहीं कि ये आचार्यगण लोकपूजित ही थे, वरन् वे आध्यात्मिक-विकास के निमित्त विभिन्न साधनाएं भी करते थे, उनके शिष्य एवं उपासक भी थे। उपर्युक्त तथ्य किसी निष्पक्ष गहन विचारणा की अपेक्षा रखते हैं, जो इसके पीछे रहे हुए सत्य का उद्घाटन कर सके। ... मेरी विनम्र सम्मति में उपर्युक्त विचारकों की नैतिक-विचारणा को जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है, उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152