Book Title: Jain Tattva Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 120
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-262 जैन- तत्त्वमीमांसा-114 स्थानांग और समवायांग में भी वे सुव्यवस्थित रूप में प्रतिपादित नहीं हैं, मात्र संख्या के संदर्भ-क्रम में उनकी सम्बन्धित संख्याओं का उल्लेख कर दिया गया है। वैसे भी, जहाँ तक विद्वानों का प्रश्न है, वे इन्हें संकलनात्मक एवं अपेक्षाकृत परवर्ती ग्रन्थ मानते हैं, साथ ही, यह भी मानते हैं कि इनमें समय-समय पर सामग्री प्रक्षिप्त होती रही है, अतः उनका वर्तमान स्वरूप पूर्णतः जिन-प्रणीत नहीं कहा जा सकता है। जैन-खगोल व भूगोल सम्बन्धी जो अवधारणाएं उपलब्ध हैं, उनका आगमिक-आधार चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति एवं जम्बूद्वीपज्ञप्ति है, जिन्हें वर्तमान में उपांग के रूप में मान्य किया जाता है, किन्तु नन्दीसूत्र की सूची के अनुसार ये ग्रन्थ आवश्यक व्यतिरिक्त अंग-बाह्य आगमों में परिगणित किय जाते हैं। परम्परागत-दृष्टि से अंग-बाह्य आगमों के उपदेष्टा एवं रचयिता जिन न होकर स्थविर ही माने गये हैं और इससे यह फलित होता है कि ये ग्रन्थ सर्वज्ञप्रणीत न होकर छद्मस्थ जैन-आचार्यों द्वारा प्रणीत हैं, अतः यदि इनमें प्रतिपादित तथ्य आधुनिक विज्ञान के प्रतिकूल जाते हैं, तो उससे सर्वज्ञ की सर्वज्ञता पर आँच नहीं आती है। हमें इस भय का परित्याग कर देना चाहिए कि यदि हम खगोल एवं भूगोल के सम्बन्ध में आधुनिक वैज्ञानिक-गवेषणाओं को मान्य करेंगे, तो उससे जिन की सर्वज्ञता पर कोई आंच आयेगी / यहाँ यह भी स्मरण रहे कि सर्वज्ञ या जिन केवल उपदेश देते हैं, ग्रन्थ-लेखन का कार्य तो उनके गणधर या अन्य स्थविर आचार्य ही करते हैं, साथ ही, यह भी स्मरण रखना चाहिए कि सर्वज्ञ के लिए उपदेश का विषय तो अध यात्म व आचारशास्त्र ही होता है, खगोल व भूगोल उनके मूल प्रतिपाद्य नहीं हैं। खगोल व भूगोल-सम्बन्धी जो अवधारणाएं जैन-परम्परा में मिलती हैं, वे थोड़े अन्तर के साथ समकालिक बौद्ध एवं हिन्दू-परम्परा में भी पायी जाती हैं, अतः यह मानना ही उचित होगा कि खगोल एवं भूगोल-सम्बन्धी जैन-मान्यताएँ आज यदि विज्ञान-सम्मत सिद्ध नहीं होती हैं, तो उससे न तो सर्वज्ञ की सर्वज्ञता पर आँच आती है और न जैनध गर्म की आध्यात्मशास्त्रीय, तत्त्वमीमांसीय एवं आचारशास्त्रीय-अवधारणाओं पर कोई खरोंच आती है। सूर्यप्रज्ञप्ति जैसा ग्रन्थ, जिसमें जैन-आचारशास्त्र और उसकी अहिंसक निष्ठा के विरुद्ध प्रतिपादन पाये जाते हैं, किसी भी

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