Book Title: Jain Shodh aur Samiksha Author(s): Premsagar Jain Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir View full book textPage 6
________________ H AMARIKSHIKARI Socia : M बीर का म सालय जरी 4254 २१, दरियागत, देहली "प्रकाशक की ओर से जैन हिन्दी साहित्य पर गत १० वर्षों से जो शोध कार्य हमा है और अब उसमें जो गतिशीलता दिखलाई देने लगी है वह उसके भविष्य के लिए शुभ संकेत है लेकिन जैन हिन्दी सहिात्य की विशालता एवं विविधता को देखते हुए अभी जितना भी कार्य हुआ है वह एक रूप से सर्वे कार्य के समान है। इसकी गहराई एवं महत्ता का प्रभी मूल्यांकन होना शेष है और इस प्रकार जैन हिन्दी साहित्य की खोज, अनुसन्धान, आलोचना एवं उसके सही मूल्यांकन के लिए शोध कार्यों एवं विद्वानों के लिए विशाल क्षेत्र पड़ा हुआ है। राजस्थान के जैन ग्रंथ संग्रहालय इस कार्य की महत्त्वपूर्ण प्राधार शिला है । यही कारण है कि जब से श्री महावीर क्षेत्र की ओर से राजस्थान के जैन शास्त्र भडारों की ग्रंथ सूचियों के चार भाग, प्रशस्ति संग्रह, एवं प्रद्युम्न, चरित, जिणदत्त चरित जैसी हिन्दी की प्रादिकालिक कृतियां प्रकाशित हुई हैं तभी से देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में जैन साहित्य के प्रति प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों में एक नवीन अभिरुचि जाग्रत हुई है व कार्य करने की भावना उत्पन्न होने लगी है । गत ४-५ वर्षों से क्षेत्र के साहित्य शोध विभाग में देश-विदेश के शोध छात्र एवं छात्राएं जैन साहित्य के विभिन्न अंगों पर जितनी संख्या में कार्य करने के लिए मा रहे हैं उससे ज्ञात होता है कि जैन साहित्य का परिचय हमारे मन्दिरों एवं ग्रंथ भंडारों की सीमानों को लांघ कर बाहर आने लगा है और विश्वविद्यालय की भूमि में प्रवेश प्राप्त करने का प्रयास हो रहा है । जैन साहित्य की गतिशीलता के ऐसे अवसर पर मुझे 'जैन शोष और समीक्षा' पुस्तक को पाठकों, शोधार्थियों तथा विद्वानों के हाथों में देते हुए प्रसन्नता JunPage Navigation
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