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जैनशिलालेख-संग्रह ग्यारहवीं सदीके हैं। इस तरह प्रस्तुत संग्रहीं कुल मिलाकर मूलसंघके कोई १५० लेख आये है।
(इ) गौड संघ-इस संघका एक लेख (क्र० ८४) मिला है। इसमे सोमदेवसूरि-द्वारा एक जिनालयके निर्माणका उल्लेख है।'
(ई) द्राविड संघ-इस संघके नन्दिगण-अरुंगल अन्वयका एक लेख ग्यारहवीं सदीका है (क्र० १७५)
इसमें शान्तिमुनि-वादिराज-वर्धमान यह परम्परा दी है। वर्धमानके समाधिमरणका स्मारक उनके गुरुबन्धु कमलदेवने स्थापित किया था। इस अन्वयका अगला लेख सन् ११९२ का है (क्र० २८२) तथा इसमे वासुपूज्यके शिष्य वज्रनन्दिका वर्णन है। इनकी गुरुपरम्परा काफ़ी विस्तारसे दी है किन्तु उसमें आचार्योका क्रम स्पष्ट नहीं है। चौदहवी सदोके एक लेखसे ( क्र. ३४४ ) इस अन्वयके श्रीपाल-पद्मप्रभ-धर्मसेन इस परम्पराका पता चलता है।
द्राविड संघके तीन लेखोमें ( क्र० २५२, ३५७, ४०९) अरुंगल अन्वयका उल्लेख नहीं है । ये लेख सन् ११५९, १२९५ तथा १४वी सदीके है । अन्तिम दो लेखोमे क्रमश: गुणसेन तया लोकाचार्यका नाम ज्ञात होता है। इस तरह प्रस्तुत संग्रहके कोई आठ लेखोसे इसका अस्तित्व ११वीं सदीसे १४वीं सदी तक प्रमाणित होता है।
१. गोडसंघका पहले संग्रहमें या अन्यत्र साहित्यमें कोई वर्णन नहीं
है। सोमदेवसूरिक लिखित यशस्तिलकचम्पू तथा नीतिवाक्यामृत
ये ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। २. पहले संग्रह में द्राविड संघके उल्लेख सन् ९९० ( क्र. १६६ ) से
मिले हैं। इसे कहीं-कहीं मूलसंघ-द्रविडान्वय और द्रविड संघकोण्डकुन्दान्वय कहा है (तीसरा माग प्रस्तावना पृ० ३५-४३)