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( ७८ ) तज एकान्त-कदाग्रह दुर्गण, वनो उदार विशेष । रह प्रसन्नचित्त सदा करो, तुम मनन तत्व-उपदेश ।
यही है महावीर सन्देश ॥ ४ ॥ जीतो राग-द्वेष-भय-इन्द्रिय, मोह कषाय अशेष । धरो धैर्य, सम चित्त रहो औ', सुख-दुख में सविशेष ।।
यही है महावीर सन्देश ॥ ५ ॥ 'वीर' उपाशक बनो सत्य के, तज मिथ्याअभनिवेष । विपदाओं से मत घबराओ, धरो न कोपावेष ॥
यही है महावीर सन्देश ॥ ६ ॥ संज्ञानी-संदृष्टि बनो औं', तजो माव संक्लेश । सदाचार पालो दृढ़ होकर, रहे प्रमाद न लेश ॥
यही है महावीर सन्देश ॥ ७॥ सादा रहन-सहन-भोजन हो, सादा भूषा वेष ॥ विश्व, प्रेम जागृत कर उर में, करो कर्म निःशेष ॥
यही है महावीर सन्देश ॥ ८॥ हो सबका कल्याण भावना, ऐसी रहे इमेश । दया-लोक सेवा-रत चित हो, और न कुछ आदेश ॥ यही है महावीर सन्देश । धन्यं यह महावीर सन्देश ॥६॥
(वीर) ॥ इति शुभम् ॥